History

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 50

समुद्री घाट क्षेत्र के अनेक शत्रुओं को पुलकेशी ने हराया। उसने अनेक राष्ट्रकूटों पर भी विजय प्राप्त की, उसने सातवाहनों को समाप्त किया, उसने पल्लव वंशी महेन्द्रवर्मा तक को निष्प्रभावी कर दिया। उसने न केवल कांची तक धावा बोला अपितु कन्याकुमारी तक अपनी संप्रभुता को स्थापित किया। समस्त दक्षिण भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के उपरांत पुलकेशी ने नर्मदा तट पर हर्षवर्धन को आसानी से हरा दिया। हर्षवर्धन जो ‘उत्तरापथ परमेश्वर’ था पूरे देश का सम्राट बनने की इच्छा से नर्मदा तट तक आगया और वहां उसे ‘दक्षिणापथ परमेश्वर’ पुलकेशी द्वितीय का सामना करना पड़ा था। चूंकि दोनों ही सम

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 49

हर दृष्टि से सनातन धर्म, बौद्ध धर्म की तुलना में श्रेष्ठ है। यह सनातन धर्म की श्रेष्ठता का ही प्रतिफल है कि उससे बौद्ध धर्म का जन्म हुआ किंतु बौद्ध धर्म में अपने समतुल्य या अपने से श्रेष्ठ संप्रदाय को उत्पन्न कर पाने की क्षमता नही रही। यही कारण है कि उससे वज्रयान, सहजयान, महाचीन और गुह्यसमाज जैसे छुटषुट मत पैदा होते रहे। इसके विपरीत सनातन धर्म का शताब्दियों पूर्व की लम्बी परम्परा रही है इस परम्परा ने परम शांति तथा आत्म तत्त्व के दर्शन से संयुक्त एक ऐसे विश्राम स्थल का निर्माण किया है जंहा किसी भी बहुमुखी समाज को समाविष्ट करने का क्षमता रही है।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 45

कलिंग देश का सम्राट खारवेल यद्यपि जैन धर्म का अनुयायी था जो अहिंसा की परम्परा व विचारों के लिए विश्वविख्यात है, किंतु वह क्षात्र के सिद्धान्त को मानने वाला महान योद्धा के रुप में प्रसिद्ध हुआ जिसके बारे में बहुत कुछ जानना शेष है। वह उन प्राचीन शासकों में से या जिन पर हम गर्व कर सकत हैं। खारवेल के बारे में सबसे बडा साक्ष्य हाथीगुम्फ काशिलालेख है जो भुवनेश्वर के निकट उदयगिरी गुफा में स्थित है। भुवनेश्वर उडिसा की राजधानी है।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 43

गुप्तकाल का वास्तुशिल्प तथा मूर्तिकला

वास्तु शिल्प तथा मूर्तिकला के क्षेत्र में गुप्तकाल में असाधारण कार्य हुआ था। आज भी गुप्तकालीन उपहार के रुप में अनेक गुफा मंदिर पाये जाते है [1]

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 42

यदि नवीन तथा नवीनतम शस्त्रों को विकसित किया जाता रहा जिससे सततरुप से शस्त्र भण्डार बढ़ता रहे तो लम्बे समय तक शांति-स्थापना की संभावना कहॉ रह जाती है ? सभी लोगों की आकांक्षा है कि पूरे विश्व में सब लोग उत्तम आचरण के साथ शांति पूर्ण जीवन व्यतीत करें किंतु क्या यह मात्र दिवास्वप्न नहीं है ? मात्र मौखिक रुप से शांति की घोषणाओं के दोहराने से तो सर्वव्यापी सर्वनाश को रोका नहीं जा सकता है। इससे तो विश्वनाश के उपरांत ही सब कुछ ठीक हो सकेगा !!

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 41

यही विशेषता हम वाल्मीकि तथा व्यास में भि देखते है – राम ने जिस तरह वाली को मारा था अथवा सीता का त्याग किया था, उसके बाद भी वे सम्मान के प्रतीक बने,रणभूमी में घटोत्कच के मारे जाने पर कृष्ण का खुशी से ताली बजाकर नाचने पर भी उन्हे पूजनीय मानना आदि ऐसे उदाहरण है जहां हमारे महापुरुषों का व्यवहार सामान्य सर्वमान्य मन्यतों से थोडा विचलित है और जिसे सुखद नही कहा जा सकता है, यह स्पष्ट करता है कि मात्र कुछ अरुचिकर कृत्यों के कारण किसी व्यक्ति को पूर्णतः अयोग्य मानना न केवल मूर्खतापूर्ण है अपितु दुर्भावनपूर्ण भी है |