History

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 80

राणा प्रतापसिंह की सफलता और उपलब्धियॉ उसकी नीतियों की योग्यता और प्रभाव को सिद्ध करती है। अपने बाहर वर्षों के सतत प्रयासों के पश्चात भी अकबर उससे कुछ भी छीन सकने में सफल नहीं हो सका। राणा प्रताप ने अपने पिता से प्राप्त राज्य को बिना क्षति अपने पुत्र को सौंपा था। यदि प्रतापसिंह अकबर के समक्ष समर्पण कर देता तो उसका पुत्र अकबर के दरबार में एक सामान्य स्थिति को ही प्राप्त कर पाता। बाद की घटनाओं ने प्रतापसिंह की समस्त उपलब्धियों को लील लिया।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 77

मध्य भारतीय मुस्लिम साम्राज्य जैसे अहमदनगर, बरार, बीदर, गोलकुण्डा, बीजापुर, गुलबर्गा आदि सतत रूप से लड रहे थे जिसमें यदाकदा विजयनगर का राजा किसी भी एक मुस्लिम राज्य का पक्षधर हो जाता था। इतिहासकारों के अनुसार रामराय ऐसे राजनैतिक दांवपेच किया करता था जो उसका एक कूटनीतिक हथियार था, किंतु जब उसके संबंध पुर्तगालियों से खराब हुए और उसे उसके विरुद्ध कूटनीतिक असफलता प्राप्त हुई तो उसने उन्हें युद्ध में हराते हुए उनके एक लाख पैगोडा छीन लिए। यद्यपि वह शक्ति संपन्न तथा योग्य था किंतु राजनैतिक कौशल की उसमें कमी थी। वह समस्याओं के मूल की पहचान नहीं कर पाया था। उसकी एक बड़ी

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 76

भारतीय विद्या भवन द्वारा इतिहास के अनेक खण्ड ग्रंथ भारतीय इतिहास के सत्य को दर्शाने हेतु प्रकाशित हुए है। आर. सी. मजूमदार लिखते है - 

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 75

केरल के अधिकांश राजा या तो ब्राह्मण थे या क्षत्रिय थे। यद्यपि राजा सामुद्री, वास्को डी गामा की गतिविधियों और उसके आचरण के प्रति संदेह करते हुए चिंताग्रस्त हो गया था फिर भी उसने वास्को डी गामा का स्वागत किया। जबकि स्थानीय मुस्लिम व्यापारियों ने इसका विरोध किया था। उन्हे शांत करने के लिए स्थानीय पुरोहित को भेजा गया जो उन्हें समझा सके कि वास्को डी गामा केवल व्यापारिक लक्ष्य लेकर आया है। इसके तत्काल बाद ही पुर्तगाली सेना ने केरल से गोवा तक के समुद्री तट पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने अपने इस दुष्कृत्य को ईसाइयत की दिव्यता प्रदान करते हुए धार्मिक न्याय की संज्ञा प्रदान

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 73

जिस समय सीमाक्षेत्र पर गुर्जर प्रतिहार के लोग, अरब देश के व्यापारियों द्वारा किये जा रहे अन्याय के विरुद्ध स्थानीय व्यापारियों के हित में अनवरत रूप से लड रहे थे तब उनके राजनैतिक प्रतिद्वंदी राष्ट्रकूट के लोग सनातन धर्म की रक्षा करने के स्थान पर इन्ही अरबवासियों को कई प्रकार की छूट दे रहे थे। यहां तक कि पूरे अरब देश में वहां की मूल संस्कृति को पूर्ण विनाश करने से पहले ही वहां के कई मुस्लिम समुदाय भारत में आकर बस चुके थे। हिन्दुओ ने कभी भी उन्हे अपने धर्म प्रचार करने तथा स्थानीय लोगों का उत्साह के साथ धर्मांतरण करने से नहीं रोका। गुजरात के जयसिंह सिद्धराज (सन् 109

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 72

महाभारत में दुर्योधन वध के पूर्व श्री कृष्ण युधिष्ठिर को समझाते है कि युद्ध में कपटी, चालाक तथा दुष्ट दुश्मन को उसी के तौर तरीकों से हराना आवश्यक हो जाता है[1]