History

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 63

कंपण द्वितीय का उत्तराधिकारी देवराय प्रथम था और उसका पुत्र विख्यात देवराय द्वितीय अथवा प्रौढ़देवराय था जो प्रौढप्रतापी’ की उपाधि से सम्मानित था। उसने बचे हुए दुश्मनों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया। उसने विजयनगर साम्राज्य की सीमाओं को और सुदृढ़ करते हुए नौसेना की शक्ति को भी बढ़ाया । उसने गोवा तक फैले समुद्री तट को पुनर्जीवित कर नये बंदरगाह तथा मालगोदामों का निर्माण करवाया। उसकी सेना का नेतृत्व आक्रामक लकण्ण दण्डेश कर रहा था। उसने पूरे साम्राज्य में एक नव चेतना का जागरण अभियान चलाकर लोगों को जागृत किया। उसने कला, साहित्य, धर्मशास्त्रों तथा विद्वानों को प्रश्रय तथा

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 61

राष्ट्रकूट साम्राज्य का हरा भरा विस्तार

कन्नड लोगों के हृदय में बसने वाला एक प्रसिद्ध नाम नृपतुंग का है। श्री विजय के साथ अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कविराजमार्ग’ की रचना करने के कारण अमोघवर्ष नृपतुंग की प्रसिद्धि अमर हो गई। यद्यपि वह क्षात्र प्रतिष्ठा संपन्न महान योद्धा था किंतु शांतिकाल में भी साम्राज्य को संतुलित प्रबंधन के साथ सम्हालने में वह सक्षम था।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 60

चालुक्य विक्रमादित्य का उत्कृष्ट शासन

कर्नाटक के प्रमुखतम सम्राटों में कल्याण चालुक्य राज सम्राट विक्रमादित्य षष्टम का नाम स्मरणीय है। वह सोमेश्वर प्रथम का पुत्र था। यह उसका सौभाग्य था कि विद्यापति बिल्हण जैसा कवि उसके दरबार में था जिसने उसकी उपलब्धियों को सदा के लिए अमर बना दिया।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 59

हमारी दुर्बलताएँ

मुख्य रूप से हमारी दुर्बलता के दो पक्ष रहे है :- प्रथम तो यह कि हमने अपने शत्रुओं को हमारे द्वार तक आने दिया तथा दूसरा यह कि हमने युद्ध के संबंध में विकसित रणनीतियों तथा शस्त्र विज्ञान की नवीनतम जानकारियों से स्वयं को अवगत नहीं रखा। इसी के साथ हमारे आपसी कलह ने इन दो कमजोरियों को हमारी पराजय का मुख्य कारण बनाया।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 58

ह्वेनसांग के अनुसार शशांक ने गया में स्थित बोधि वृक्ष को कटवा दिया था तथा पास के मंदिर से बुद्ध की प्रतिमा को हटाने का आदेश दिया था। किंतु इस संबंध में आर.सी.

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 57

शौर्य काल

पिछले कुछ समय में लिखे गये भारतीय इतिहास में अनेक घटनाओं तथा प्रकरणों को अवांछित रूप से सम्मान प्रदान करते हुए महत्वपूर्ण बतलाया गया है। ऐसे अनेक विवरण दिये गये है। जिनका हमारे इतिहास में अस्तित्व ही नही था और इस प्रकार कपट पूर्वक लोगों को भ्रमित तथा गुमराह किया गया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे झूठे कथन सत्य को जानने में सबसे बडी बाधा उपस्थित करते हैं। आज की हमारी अनेक इतिहास की पाठ्यपुस्तके इसी प्रकार के कपटयुक्त लेखन के वर्ग में आती है।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 56

अन्य राजपूत राजवंश

गुर्जर चौलुक या चालुक्य वंश को सामान्य रुप से सोलंकी वंश के नाम स जाना जाता है। भीमदेव प्रथम (सन् 1022-64) अत्यधिक प्रसिद्ध था किंतु जब महमूद गजनी ने सोमनाथ पर आक्रमण किया तो वह एक डरपोक व्यक्ति की भांति अपनी जान बचाने के लिए कच्छ के सुरक्षित क्षेत्र में भाग गया। इस प्रकार उसने क्षात्र चेतना पर एक अमिट कलंक लगा दिया। इतना ही नही मूर्खता वश यह सदैव परमार भोज और कलचुरी कर्ण का भी विरोध करता रहा जो सनातन धर्म के प्रमुख संरक्षक थे।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 54

आज हमें पाल राजवंश द्वारा निर्मित कोई भी बडा पूजा केन्द्र अथवा देवालय दिखाई नहीं देता इसका एकमात्र कारण बख्तियार खिलजी तथा उसी के समान अन्य मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा किये गये रक्तरंजित द्वेषयुक्त विनाश लीला में निहित है जिसमें हजारों हिंदू मंदिरों को सतत रूप से नष्ट किया था। पालों से संबंधित आज हमें जो भी उपलब्ध है वे वास्तुशिल्प का कुछ भग्नावशेष है, कुछ तस्वीरें तथा आरेखन है जो विभिन्न म्यूसियमों में संरक्षित किये गये है – उदाहरणार्थ गरुड़ पर आसीन विष्णु की मूर्ति, अर्धनारीश्वर, कल्याणसुन्दर, तथा गंगा – यमुना का शिल्पाकार । यह सभी सनातन धर्म के प्रतीक चिन्ह