भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 29
यह स्थिति सनातन धर्म में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य तथा कुमारगुप्त के समय तक भी बनी रही। ऐतिहासिक ग्रंथों तथा अभिलेखों से ज्ञात होता है कि ईसा की पांचवी तथा छठी शाताब्दी तक इस प्रकार का सांस्कृतिक समायोजन तथा समावेश सफलता पूर्वक होता रहा था। अन्य देश, समुदाय तथा संस्कृति के लोग भारत में आये और उन्होने अपनी पसंद के अनुसार वर्ण धारण कर लिया चाहे वह ब्राह्मण, वैश्य अथवा अन्य वर्ण हो। उदाहरण स्वरुप उत्तर भारत के नागर-ब्राह्मण जिनके उपनाम नागर, भटनागर आदि है मूलरुप से ब्राह्मण जाति से संबंध नही रखते थे और यही बात चितपावन ब्राह्मणों पर भी समान रुप से लागू होती है। और इस