भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 15
बुद्ध के समय के सोलह बडे राज्य निम्नानुसार थेः-
बुद्ध के समय के सोलह बडे राज्य निम्नानुसार थेः-
ಇದರ ಇನ್ನೊಂದು ಪಾರ್ಶ್ವವನ್ನು ಡಿ.ವಿ.ಜಿ. ಅವರ Chamber of Princes (ನರೇಂದ್ರ ಮಂಡಳ) ಕುರಿತಾದ ಸಮಗ್ರ ಲೇಖನಗಳಲ್ಲಿ ಕಾಣಬಹುದು. ಅದರ ತಾತ್ಪರ್ಯವನ್ನು ಈ ರೀತಿ ನಿರೂಪಿಸಬಹುದು.
೧೯೨೦ರಲ್ಲಿ ಆರಂಭಗೊಂಡ ನರೇಂದ್ರ ಮಂಡಲ್ ಸಂಸ್ಥೆಯು ಪ್ರತಿವರ್ಷ ದೆಹೆಲಿಯಲ್ಲಿ ಸೇರುತಿತ್ತು. ಈ ಹೊತ್ತು ನಮ್ಮ ದೇಶದ ಸಂಸದಭವನದ ಗ್ರಂಥಾಲಯ (Parliament Library) ಇರುವ ಕಟ್ಟಡದಲ್ಲಿ ಅದರ ವಾರ್ಷಿಕ ಕಲಾಪ ನಡೆಯುತ್ತಿತ್ತು.
ಅದರ ಧ್ಯೇಯ ಸರಳವಾಗಿಯೇ ಇತ್ತು: ದೇಶೀಯ ಸಂಸ್ಥಾನಗಳ ಆಗುಹೋಗುಗಳನ್ನು, ಸಮಸ್ಯೆಗಳನ್ನು ಬ್ರಿಟಿಷ್ ಸರಕಾರದೊಂದಿಗೆ ಚರ್ಚಿಸುವುದು.
इन सबमें अद्धितीय भार्गववंशी परशुराम थे। वे ब्राह्म-क्षात्र समन्वय के श्रेष्ठ प्रतीक है। परशुराम द्वारा दुष्ट क्षत्रियों की सुव्यवस्थित विनाश लीला का वर्णन पुराणों में दिया गया है। शास्त्रानुसार आपद्धर्म[1] के रुप में हर कोई क्षात्र धर्म धारण कर सकता है।
कवि शिरोमणि महाकवि कालिदास ने अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति ‘रघुवंश’ में यह पूर्णतः स्पष्ट किया है कि किस प्रकार एक साम्राज्य में क्षात्र को पोषित किया जाना चाहिए और साम्राज्य की समृद्धि हेतु किस तेजस्विता की आवश्यकता है। कालिदास ने दिलिप तथा रघु जैसे महान राजाओं और अग्निवर्ण जैसे चरित्र हीन तथा अयोग्य राजाओं की तुलना करते हुए स्पष्ट किया कि किन नैतिक सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक है।
It is now a foregone conclusion that Ayodhyā was the birthplace of Śrī-rāma and a grand devālaya of Rāma adorned ‘the undefeated city’ until it was broken down during Babur’s reign and a mosque was constructed upon it by his commander Mir Baqi (c. 1528 CE). This was widely known among Hindus for over four centuries. The 9th November 2019 verdict of the honourable Supreme Court of India finally brought an end to the morbid saga and paved the way for the construction of a grand Rāma-mandira.
इसी शौर्य भाव को हम ऋषि विश्वामित्र में भी देखते हैं जिन्होने राम को क्षात्र दीक्षा प्रदान की थी। एक महर्षि बनने से पूर्व विश्वामित्र ने ब्राह्म के साथ संघर्ष करते हुए ब्राह्म के कठिन पथ के महत्व का अनुभव कर, ब्राह्म क्षात्र समन्वय की महत्ता को समझा। अपने इस अनुभव के उपरांत वे सदैव सत्य के पथ पर चलते हुए अन्ततः आचार्य के पद पर प्रतिष्ठित हुए। परशुराम जो स्वयं एक ब्राह्मण थे, क्षत्रियों से लड़ते हुए क्षात्र में गहराई से सराबोर थे। वे भी अपने इस कृत्य की व्यर्थता को समझ कर आत्मबोध के मार्ग पर अग्रसर हुए। विश्वामित्र को वशिष्ठ ने तथा परशुराम को राम ने यथार्थ का मार
पुराणों के लक्षणों को दर्शाने वाला प्रसिद्ध श्लोक जो पुराणों की पांच मुख्य विषयवस्तु का वर्णन करता हैः-
ಈ ಒಂದು ಅಂಶವೇ ಮತ್ತೊಂದು ಪ್ರತ್ಯೇಕ ಅಧ್ಯಾಯವನ್ನು ಬಿಚ್ಚಿಡುತ್ತದೆ, ಅದೇ ಒಂದು ವಿಶಿಷ್ಟ ಅಧ್ಯಯನದ ವಸ್ತುವೂ ಹೌದು. ಅದೆಂದರೆ ಡಿ.ವಿ.ಜಿ. ಅವರು ದೇಶೀಯ ಸಂಸ್ಥಾನಗಳನ್ನು ಕುರಿತು ಐತಿಹಾಸಿಕ ಹಿನ್ನೆಲೆಯಿಟ್ಟುಕೊಂಡು ಮಾಡಿದ ಹೇರಳವಾದ ಟೀಕೆಗಳು. ಗುಂಡಪ್ಪನವರು ದೇಶೀಯ ಸಂಸ್ಥಾನಗಳ ಕುರುಡು ವಕ್ತಾರರಾಗಿರಲಿಲ್ಲ. ಆ ವಿಷಯವನ್ನು ಸಮಗ್ರ ದೃಷ್ಟಿಯಿಂದ ವೀಕ್ಷಿಸಿದ್ದರು, ಚಿಕಿತ್ಸಕವಾಗಿ ಮಂಡಿಸಿದ್ದರು.