History

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 28

उस समय में वेदों का अनुसरण करने वालों ने भी बौद्ध धर्म का बहिष्कार नहीं किया था। सातवाहनों ने न केवल सांची स्तूप के द्वारों का निर्माण करवाया अपितु अमरावती ने एक पूरे स्तूप का निर्माण भी करवाया। उसके कुछ अंश चेन्नई, एगमोर के शासकीय संग्रहालय तथा ब्रिटिश संग्रहालय में प्रदर्शनार्थ रखे हैं[1]। दिखाई दे रहा है वैसा तो उस समय राजगुरुओं के मध्य भी नहीं था। संभवतः संप्रदाय विशेष की भावना से प्रेरित कुछ मतावलम्बी रचनाकारों की कृतियों ने अन्य पंथो के प्रति इस प्रकार घृणा भाव को जन्म दिया ह

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 27

भगवान बुद्ध के जीवन की इस घटना को देखें। एक दिन बुद्ध के विश्वास पात्र तथा संबंधी (गृहस्थजीवनका) विख्यात आनन्द अपने साथ यशोधरा (बुद्ध के पूर्वाश्रम मे की पत्नी) को लेकर बुद्ध के समक्ष उपस्थित होकर कहने लगा “गुरुजी! महिलाओं को भी सन्यास की दीक्षा प्रदान कीजिए!” । जब बुद्ध ने उत्तर दिया ‘नही! यह नही हो सकता है’ तब आनन्द ने पूछा ‘आप महिलाओं को सन्यास की दीक्षा क्यों नहीं दे सकते है ? क्या आप ही नहीं कहते हैं कि सब लोग समान? तब बुद्ध बोले ‘नही !

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 26

ऐसी ही घटना को आज हम गांधी-नेहरु काल में देख रहे हैं – यदि नेहरु जैसा व्यक्ति गांधी का उत्तराधिकारी हो सकता है तो यह गांधी के सिद्धांतों की वास्तविकता को दर्शाता है। जब हम देखते हैं कि किस प्रकार सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल और राजगोपालाचारी जैसे सुयोग्य व्यक्तियों पर दबाव डाल कर उन्हे हटा दिया गया तो यह स्पष्ट हो जाता है कि गांधी किसके पक्ष का समर्थन जुटाने में संलिप्त थे। भूतपूर्व जोधपुर विश्व विद्यालय के दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक डा.एम.एम. कोठारी ने ‘क्रिटिक ऑफ गांधी’ नामक एक मूल्यवान पुस्तक लिखी है। उसमें इस प्रकार की अनेक घटनाओं का विवरण है। डा.

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 25

अशोक की अहिंसा नीति का आकलन

इत् सिंग जैसे चीनी यात्री के अभिलेखानुसार अशोक एक सन्यासी तथा बौद्ध भिक्षु था। उनके कथनानुसार उन्होने ऐसी प्रतिमा के दर्शन भी किये हैं। बौद्ध व्यवस्था में कोई भी सन्यासी पुनः गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर सकता है। वे किसी भी अन्य आश्रम में प्रवेश कर सकते है।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 23

दुर्भाग्य से अशोक को कृष्ण के समान कोई मार्गदर्शक नहीं मिला और नहीं उसने बुद्ध के समान सत्य को पूर्ण समर्पित जीवन जीया। वह क्षात्र के पथ से भटक गया। मेरी दृष्टि में यह अशोक की एक गंभीर कमी है। एक विशाल साम्राज्य को स्थापित करने के उपरांत एक सम्राट को सतत रुप से धर्मदण्ड के माध्यम से असहायों की सुरक्षा तथा दुष्टों को दण्ड़ देना होता है। उस साम्राज्य का क्या भविष्य हो सकता है जिसका सम्राट घोषणा करता है ‘मै अब कोई युद्ध नही लडुंगा’ ?

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 22

चाणक्य यंहा दो शब्दों का प्रयोग करता है – ‘अपवाहयंति’ और ‘कर्षयंति’ अर्थात् ‘पूरीतरह से भक्षण करना’ और ‘उत्पीडित’ करना।

चाणक्य का कहना है कि यदि हम इन कठोर विपत्तियों से बचना चाहते है तो हमे अपने स्थानीय राजा की आवश्यकता है। सिकंदर के आक्रमण से जिस प्रकार उत्तर पश्चिम के राज्यों का विनाश हुआ था उसके उपरांत देश को जिस आशा और विश्वास की आवश्यकता थी वह चाणक्य के दूरदर्शी दृष्टिकोण द्वारा प्राप्त हुआ। चाणक्य ने न केवल एक शक्ति संपन्न साम्राज्य की स्थापना की वरन उसने भारत में सिंकदर के प्रतिनिधि सेल्युकस निकटार को भी हराया।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 19

सनातन धर्म अगणित समस्याओं के श्रेष्ठ निदानों का अनमोल खजाना है। उदाहरण के लिए ‘संकल्प’ पर विचार करें जिसे हम अपने दैनिक पूजा पद्धति की एक क्रिया के रुप में करते हैं। इसमें हम वर्तमान दिन के साथसाथ ब्रह्माण्डिय काल को स्वीकारते है, अपने निवास स्थल के साथ साथ हम ब्रह्माण्डिय देश  को भी स्वीकारते है। हम कहते है “शुभे शोभने मुहूर्ते आद्य-ब्रह्मणः द्वितिया-परार्धे” से लगा कर ‘कर्मकाण्ड़ करने के दिन तक। उसी प्रकार ब्रह्माण्ड से प्रारम्भ कर ‘जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे गोदावर्याः दक्षिणे तीरे’ तक हम दिक् का स्मरण करते हैं। इसमें एक व्यक्ति अपनी स्थिति और विशिष्ट समय