History

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 8

शुक्ल यजुर्वेद का एक अन्य श्लोक निम्नानुसार है –

मेरे कंधों में बल है, मेरी बुद्धि में बल है
मेरी बांहो में, मेरे साहस में कर्म भरा है
एक हाथ से कार्य करु, दूजे से शौर्य दिखाऊ
मै स्वयं क्षात्र कहलाऊ[1]

ದೇಶೀಯ ಸಂಸ್ಥಾನಗಳನ್ನು ಕುರಿತ ಡಿ.ವಿ.ಜಿ. ಅವರ ಚಿಂತನೆಗಳು - 2

ಒಪ್ಪಂದಗಳೆಂಬ ಠಕ್ಕು

ಈ ರೀತಿ ಗುಲಾಮಗಿರಿಗೆ ತಳ್ಳುವುದಕ್ಕೆ ಬ್ರಿಟಿಷರು ಬಳಸಿಕೊಂಡ ಏಕೈಕ ಹಾಗೂ ಅತ್ಯಂತ ಪ್ರಬಲವಾದ ಅಸ್ತ್ರ: ಒಪ್ಪಂದಗಳು. ಒಂದೊಂದು ಒಪ್ಪಂದದ ಸಂದರ್ಭ, ಹಿನ್ನೆಲೆ ಭಿನ್ನವಾಗಿದ್ದರೂ ಅವೆಲ್ಲದರ ಅಂತಿಮ ಪರಿಣಾಮ ದಾಸ್ಯದಲ್ಲಿ ಪರ್ಯಾವಸಾನವಾಯಿತು ಎನ್ನುವುದು ನಿರ್ವಿವಾದ. ಇದರಲ್ಲಿ ಶೇಖಡಾ ೯೦ರಷ್ಟು ಒಪ್ಪಂದಗಳು ಆದದ್ದು ಯುದ್ಧದ ಸಂದರ್ಭದಲ್ಲಿ – ಅವು ಯುದ್ಧಪೂರ್ವ ಅಥವಾ ಯುದ್ಧದ ಮಧ್ಯ ಅಥವಾ ಯುದ್ಧಾನಂತರದವು.

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 6

जब कभी हम क्षात्र गुण की अनदेखी करते है तब कुछ ऐसे तथा कथित शांतिवादी लोग होते हैं जो इसे हिंसा से जोड़ कर इसे निर्दयी तथा अमानवीय समझते हैं। यह एक त्रुटियुक्त्त दृष्टिकोण है। बिना सुरक्षा ‘मात्स्यन्याय’ (अर्थात् बडी मछली छोटी मछली को खा जाती है) प्रचलन में आ जाता है। इस संबंध में महाभारत के शांतिपर्व में ‘राजधर्मप्रकरण’ पर विस्तृत विवेचना की गई है। हमें समझना होगा कि यदि व्यवस्था चाहिए तो दण्ड़ का प्रावधान आवश्यक है, दण्ड के प्रावधान से ही व्यवस्था की स्थापना होती है। कामंदकीय नीतिसार ग्रंथ[1]

ದೇಶೀಯ ಸಂಸ್ಥಾನಗಳನ್ನು ಕುರಿತ ಡಿ.ವಿ.ಜಿ. ಅವರ ಚಿಂತನೆಗಳು - 1

ನ ತತ್ರ ರಾಜಾ ರಾಜೇಂದ್ರ ನ ದಂಡೋ ನ ಚ ದಂಡಿಕಾಃ ।

ಸ್ವಧರ್ಮೇಣೈವ ಧರ್ಮ೦ ಚ ತೇ ರಕ್ಷನ್ತಿ ಪರಸ್ಪರಮ್ ।। (ಮಹಾಭಾರತ, ಭೀಷ್ಮಪರ್ವ, ೧೨.೩೬)

ರಾಜೇಂದ್ರ! (ಕೃತಯುಗದಲ್ಲಿ) ರಾಜನೂ ಇಲ್ಲ, ದಂಡಿಸುವನೂ ಇಲ್ಲ, ದಂಡನೆಗೆ ಒಳಪಡುವವನೂ ಇಲ್ಲ. ಸ್ವಧರ್ಮವೇ ಪರಸ್ಪರರ ಧರ್ಮವನ್ನು ರಕ್ಷಿಸುತ್ತದೆ.

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 4

श्री कृष्ण

श्री कृष्ण को ब्राह्म-क्षात्र समन्वय का सर्वोत्त्कृष्ठ अनुकरणीय प्रतीक माना जा सकता है। उनके पूर्व प्रत्येक आदर्श का प्रतिनिधित्त्व भिन्न भिन्न व्यक्त्तियों द्वारा किया गया था। कृष्ण अकेले ऐसे हैं जिनमें ब्राह्म तथा क्षात्र की श्रेष्ठता चरम पराकाष्ठा प्राप्त करती है। शायद यही कारण है कि भारतीय परम्परा में उन्हें ‘जगद्गुरु’ और ‘पूर्णावतार’ के रुप में पूजा जाता है। 

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 2

युद्दभूमि में बडे बडे योद्दाओं द्वारा प्राण त्यागने वाले वीरों को प्राप्त ‘स्वर्गलोक’ की अवधारणा में सनातनधर्म और सेमेटिक धर्मो के मध्य मूलभूत अन्तर है। उदाहरणार्थ इस्लाम में शहीद को जन्नत मे विलासिता का सुखभोग जैसे बहत्तर हूरों के साथ शारिरिक भोग का आश्वासन दिया गया है। इसके विपरीत भारतीय परम्परानुसार हमें असंख्य ऐसे ‘वीरागल’, अर्थात् बलिदानी की स्मृति में खड़े किये गये प्रस्तर स्तंभ मिलते है जिनके तीन भाग होते है। आधारभाग में रणभूमि में योद्दा के शौर्य प्रदर्शन और उसके प्राण-त्याग का चित्रण उत्कीर्ण होता है, मध्य भाग में देवतागण उसे अपने स्वर्गिक वीमान में बैठ