History

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 95

सारांश रूप में अहिल्याबाई के रूप में हम हजार वर्षों के मुस्लिम अत्याचारों के विपरीत एक अत्यंत उदात्त हिंदू चरित्र को देखते है। अहिल्याबाई और सवाई जयसिंह दोनो ने मुगलों से कोई सीधा युद्ध नहीं किया फिर भी उन्होंने अपने विशिष्ट ढंग से सनातन धर्म की सुरक्षा और विकास के लिए सतत रूप से अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। यह अपने आप में भारतीय क्षात्र परम्परा का अद्भुत उदाहरण है।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 94

अहिल्याबाई ने अपने कोषालय का हमेशा परिपूर्ण रखा उसके शासन काल में मालवा क्षेत्र अति समृद्ध प्रांत था। अपने प्रजाजनों के कल्याण के अतिरिक्त उसने कभी भी एक रुपये का फिजूल खर्च नहीं किया। उसने अपने पर भी कोई खर्च न करते हुए पवित्र बिल्व पत्र की साक्ष्य में प्रतिज्ञा पूर्वक अपने वैयक्तिक कोषागार के सोलह करोड़ की एक बड़ी धनराशि अपने देश हित में जनकल्याणार्थ दान कर दी थी। उसने पूरे भारत भर में धमार्थ, परोपकारी कार्य किए थे। उसके यह प्रमुख कार्य आज भी अस्तित्व में है और उसके प्रति सम्मान तथा आश्चर्य का भाव जागृत करते है।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 93

अहिल्याबाई का जन्म औरंगाबाद के निकट एक गॉव चॉडी में मानकोजी पटेल के घर हुआ था। यद्यपि आज के सन्दर्भ में उनका संबंध पिछड़े वर्ग से था तथापि उनमें अति उच्च संस्कार थे। आधुनिक भारत के पूर्ववर्त्ती समय में प्रत्येक वर्ण के लिए सदाचरण, उच्च संस्कार, उदारता, ज्ञान प्राप्ति की भावना, अध्यात्म आदि के महान आदर्श को प्राप्त करने के लिए अवसरों की कोई कमी नही थी। इसी कारण से बिना लिंग भेद या उम्र भेद के समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति में चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी रही हो, प्राचीन भारतीय संस्कृति की चेतना सदैव जागृत रही थी। निस्संदेह रूप से इन उच्च आदर्शों ने लोगों को

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 92

प्रारम्भ से ही वह मुस्लिम बादशाहों की गतिविधियों नियमों, उनके धार्मिक विश्वास, अन्याय, असहशीलता तथा अविश्वसनीय व्यवहार को देखता आया था जो अवगुण उन्हे इस्लाम के अनुयायी के रूप में प्राप्त हुए थे। वह शुरू से ही समझ चुका था कि इसे समाप्त करने हेतु राजपूतों, मराठाओं, सिखों, और जाटों का एक होना आवश्यक है तथा इसके लिए वह (जयसिंह) अथक प्रयास करता रहा। मुगल साम्राज्य का दरबारी होने का लाभ लेते हुए जयसिंह ने राजपूतों और मराठाओं के मध्य विशेष संबंध स्थापित करने में सफल मध्यस्थता की थी। अपनी इस चतुराई के कारण एक ओर उसे पेशवाओं का तथा दूसरी ओर मुगल शासकों का समर्थन प्राप्त

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 91

औरंगजेब की मृत्यु के बाद मराठा, राजपूत, सिख और शक्ति संपन्न हो गये। सनातन धर्म का पुनर्जागरण होने लगा। नादिरशाह सतत रुप से दिल्ली के कमजोर शासको को इस स्थिति की चेतावनी देता रहा था। यह दक्षिण के निजाम का अहंकार था जिसने नादिरशाह जैसे लुटेरे आक्रांता को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। इसी प्रकार टीपू ने भी पठानों को भारत पर आक्रमण हेतु आमंत्रित किया था। यह सब कृत्य इस्लाम की प्रकृति के अनुसार उसके मानने वालों द्वारा स्वाभाविक रूप से किये जाते रहे – इतिहास के अध्येताओं के लिए उनके द्वारा इस्लाम को न मानने वालों लोगों पर किस तरह विभिन्न तरीकों से हिंसात्म

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 90

पंद्रहवीं शताब्दी में शेख निजामुद्दीन औलिया लिखते है कि इस्लाम के धर्मोपदेश से हिंदुओं के विचारों को नहीं बदला जा सकता है। निम्नतम स्तर के लोगों को भी अपनी जाति पर गर्व था। दुख प्रकट करते हुए औलिया कहते है कि वे धर्मान्तरण के लिए तैयार ही नहीं होते हैं।

भारतीय क्षात्त्र परम्परा - Part 86

छत्रपति शिवाजी :- हिंदू धर्म के पथ प्रदर्शक

दक्षिण भारत में क्षात्र चेतना की परम्परा के एक और महानतम उदाहरण हिंदू धर्म के ध्वजवाहक शिवा-महाराज अर्थात छत्रपति शिवाजी रहे हैं। शूद्र माने जाने वाले भोंसले वंश में शिवाजी का जन्म हुआ था। शिवाजी का मूल उद्गम मेवाड़ के सिसोदिया समुदाय से रहा है अतः उन्हें राणा प्रताप परम्परा से जोड़ा जा सकता है।