महाभारत में दुर्योधन वध के पूर्व श्री कृष्ण युधिष्ठिर को समझाते है कि युद्ध में कपटी, चालाक तथा दुष्ट दुश्मन को उसी के तौर तरीकों से हराना आवश्यक हो जाता है[1]। जब दुर्योधन वैशम्पायन तालाब में छिपा हुआ था, और वहां से बाहर आया तो युधिष्ठिर ने उसे अपने पसंद के किसी भी शस्त्र के साथ किसी भी पाण्डव से लडने हेतु आमंत्रित किया इसपर श्रीकृष्ण ने उसे समझाया कि पूर्व में जुआ खेलते समय की मूर्खता को वह पुनः न दोहरावे! यह युद्ध है! इसमें ऐसी मूर्खता उचित...
chanakya
जब तक भोज जीवित रहा, गजनी कुछ विशेष प्राप्त कर पाने में सफल नहीं हो सका किंतु भोज को अनेक सनातन धर्मियों ने ही मिलकर युद्ध भूमि में मार दिया। महमूद गजनी के बारम्बार हमलों तथा उसकी हिंसक घुसपैठियों के बाद भी यह क्षेत्र कुछ ही समय में अपनी पूर्व स्थिति में आ गये। उसके सोमनाथ मंदिर को नष्ट करने के पांच वर्षों के अंतराल के बाद ही गुजरात पहले से भी अधिक समृद्ध और शक्ति संपन्न हो गया। उन्होंने न केवल सोमनाथ मंदिर का अतिभव्य रूप में पुनर्निर्माण किया...
जो महिलाए उनके लिए अप्राप्य थी जैसे कि रानी रूपमती, रानी जयवंती, रानी दुर्गावती तथा अन्य भी उन्हे बादशाहों की अतृप्त वासना की आग में जलना पड़ा। इस प्रकार के अनेक विवरण अबुल फजल से लेकर विन्सेंट स्मिथ द्वारा लिखे गये है।  शाहजहां अपनी हिन्दू घृणा, निर्दयता, लालच और वासना के लिए कुख्यात था। फ्रेंकोइस बर्नियर ने लिखा है कि उसके स्वयं अपनी पुत्री जहान आरा से योन संबंध थे तथा उसने उसके सभी प्रेमियों की हत्या करवा दी थी। इतना ही नहीं उसने कुलीन दो...
Attack of Mahmud of Ghazni
संघर्ष-काल भारतवर्ष पर पहले इस्लामिक आक्रमणों का दौर अब हम विशेष रूप से पश्चिम एशिया के मुस्लिम सैन्य बलों द्वारा भारत पर किये गये पाशविक आक्रमणों की प्रकृति का विश्लेषण करेंगे। इसी परिप्रेक्ष्य में हम यह भी देखेंगे कि किस प्रकार हमारी क्षात्र चेतना ने इससे अपना रक्षण करते हुए हमारी संस्कृति का संरक्षण किया। इस संबंध में व्यापक विमर्श होता रहा है तथा जानकारियों का भंडार उपलब्ध है, फिर भी उन्हें संतोषजनक ढंग से प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। इसका...
भारत में हम ऐसे अनेक साम्राज्यो के उदाहरण पाते है कि एक क्षेत्र के साम्राज्य का आधिपत्य किसी अन्य क्षेत्र पर स्थापित हुआ हो। जैसे नेपाल और मिथिला के शासक सेन वंश तथा उत्तरभारत के सोलंकी लोग, कर्नाटक क्षेत्र से यंहा स्थापित हुए थे। इसी प्राकर राठोड़ वंश भी कर्नाटक के राष्ठ्रकूटों के वंशज है। इसी प्रकार गंगा के तटवासी गंग लोग दक्षिणी कर्नाटक के शासक बन गये थे। विजयनगर साम्राज्य के पतन के उपरांत नायक राजाओं द्वारा आंध्र, तमिलनाडु में प्रतिस्थापित...
रेड्डियों का विजय घोष तथा गजपतियों का सामर्थ्य प्रतापरुद्र के अवसान के उपरांत आंध्र में रेड्डी राजाओं ने मुस्लिम आक्रमणों का सामना किया था। इनमें वेमारेड्डी तथा उसका अनुज मल्लारेड्डी मुख्य थे। चौदहवीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणों से आंध्र को सुरक्षित रख पाने में उनकी भूमिका प्रशंसनीय रही। रेड्डी लोगों का संबंध शूद्र वर्ण से रहा है। काकतियों का संबंध तो वस्तुतः कम्म जैसी छोटी जाति से भी रहा है किंतु क्या उन्होंने क्षात्र भाव की ज्योति की प्रखरता...
प्राचीन आंध्र में हमें इस प्रकार के क्षात्र भाव के दर्शन नहीं होते हैं। वहां के प्रथम शासक सातवाहन लोग थे किंतु उन्होंने पूरे दक्षिण भारत पर शासन किया था। आंध्र में वही के स्थानीय शासकों में काकातीय वंश प्रमुख है गणपतिदेव (1198-1262) काकतीय राजवंश का मुख्य शासक रहा है। बाल्यावस्था में ही उसे यादवों ने बंदी बना लिया था किंतु उसने स्वयं को स्वतंत्र कर अपना एक अलग साम्राज्य खड़ा कर लिया। यह काकतीय साम्राज्य गणपतिदेव के प्रयासों के कारण लगभग सौ...
Gangaikondacholapuram
चोल लोगों पर यह बड़ा आरोप लगाया जाता है कि वे वैष्णव विरोधी थे। इसको प्रमाणित करने के कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। राजराज तथा राजेन्द्र चोल दोनों ने ही अनेक विष्णु मंदिरों का निर्माण करवाया था। नागपट्टनं में उन्होंने बौद्ध विहार का निर्माण करवाया था। पुडुकोट्टई जिले के सित्तनवसल में जो सिद्धों का केंद्र स्थान है, जैनों की सुरक्षा तथा सहयोगार्थ उन्होंने खुल कर मदद की। उसी स्थान से सिद्ध-प्रणाली की औषधि का प्रारम्भ हुआ। तमिल साहित्य में जैन लोगों का...
Gangaikondacholapuram
पाप्ड्या, चोल एवं चेर चोल लोगों का शासन तमिलनाडु के पूर्वी तट पर था, पाण्ड्याओं का दक्षिण भारत के मध्य क्षेत्र में तथा चेर लोगों ने पश्चिमी तट पर शासन किया । इन तीनों को ‘मुवेन्दिदर’ (तीन शासक) के नाम से जाना जाता रहा है। जहां चेर साम्राज्य था वह क्षेत्र आज का केरल प्रांत है। केरल द्वारा क्षात्र परंपरा को कोई सीधा योगदान नहीं दिया गया तथापि ज्ञानार्जन, अध्ययन और अध्यापन को पोषित करने और उसके अनुकूल परिवेश प्रदान कर उसने क्षात्र के एक अन्य पक्ष...
कंपण द्वितीय का उत्तराधिकारी देवराय प्रथम था और उसका पुत्र विख्यात देवराय द्वितीय अथवा प्रौढ़देवराय था जो प्रौढप्रतापी’ की उपाधि से सम्मानित था। उसने बचे हुए दुश्मनों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया। उसने विजयनगर साम्राज्य की सीमाओं को और सुदृढ़ करते हुए नौसेना की शक्ति को भी बढ़ाया । उसने गोवा तक फैले समुद्री तट को पुनर्जीवित कर नये बंदरगाह तथा मालगोदामों का निर्माण करवाया। उसकी सेना का नेतृत्व आक्रामक लकण्ण दण्डेश कर रहा था। उसने पूरे साम्राज्य...