
सारांश रूप में अहिल्याबाई के रूप में हम हजार वर्षों के मुस्लिम अत्याचारों के विपरीत एक अत्यंत उदात्त हिंदू चरित्र को देखते है। अहिल्याबाई और सवाई जयसिंह दोनो ने मुगलों से कोई सीधा युद्ध नहीं किया फिर भी उन्होंने अपने विशिष्ट ढंग से सनातन धर्म की सुरक्षा और विकास के लिए सतत रूप से अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। यह अपने आप में भारतीय क्षात्र परम्परा का अद्भुत उदाहरण है।
सवाई जयसिंह ने हिन्दुओं को जजिया, तीर्थ कर, स्नान कर आदि इस्लाम के अत्याचार...

अहिल्याबाई ने अपने कोषालय का हमेशा परिपूर्ण रखा उसके शासन काल में मालवा क्षेत्र अति समृद्ध प्रांत था। अपने प्रजाजनों के कल्याण के अतिरिक्त उसने कभी भी एक रुपये का फिजूल खर्च नहीं किया। उसने अपने पर भी कोई खर्च न करते हुए पवित्र बिल्व पत्र की साक्ष्य में प्रतिज्ञा पूर्वक अपने वैयक्तिक कोषागार के सोलह करोड़ की एक बड़ी धनराशि अपने देश हित में जनकल्याणार्थ दान कर दी थी। उसने पूरे भारत भर में धमार्थ, परोपकारी कार्य किए थे। उसके यह प्रमुख कार्य आज भी...

अहिल्याबाई का जन्म औरंगाबाद के निकट एक गॉव चॉडी में मानकोजी पटेल के घर हुआ था। यद्यपि आज के सन्दर्भ में उनका संबंध पिछड़े वर्ग से था तथापि उनमें अति उच्च संस्कार थे। आधुनिक भारत के पूर्ववर्त्ती समय में प्रत्येक वर्ण के लिए सदाचरण, उच्च संस्कार, उदारता, ज्ञान प्राप्ति की भावना, अध्यात्म आदि के महान आदर्श को प्राप्त करने के लिए अवसरों की कोई कमी नही थी। इसी कारण से बिना लिंग भेद या उम्र भेद के समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति में चाहे उसकी आर्थिक...

प्रारम्भ से ही वह मुस्लिम बादशाहों की गतिविधियों नियमों, उनके धार्मिक विश्वास, अन्याय, असहशीलता तथा अविश्वसनीय व्यवहार को देखता आया था जो अवगुण उन्हे इस्लाम के अनुयायी के रूप में प्राप्त हुए थे। वह शुरू से ही समझ चुका था कि इसे समाप्त करने हेतु राजपूतों, मराठाओं, सिखों, और जाटों का एक होना आवश्यक है तथा इसके लिए वह (जयसिंह) अथक प्रयास करता रहा। मुगल साम्राज्य का दरबारी होने का लाभ लेते हुए जयसिंह ने राजपूतों और मराठाओं के मध्य विशेष संबंध स्थापि...

औरंगजेब की मृत्यु के बाद मराठा, राजपूत, सिख और शक्ति संपन्न हो गये। सनातन धर्म का पुनर्जागरण होने लगा। नादिरशाह सतत रुप से दिल्ली के कमजोर शासको को इस स्थिति की चेतावनी देता रहा था। यह दक्षिण के निजाम का अहंकार था जिसने नादिरशाह जैसे लुटेरे आक्रांता को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। इसी प्रकार टीपू ने भी पठानों को भारत पर आक्रमण हेतु आमंत्रित किया था। यह सब कृत्य इस्लाम की प्रकृति के अनुसार उसके मानने वालों द्वारा स्वाभाविक रूप से किय...
पंद्रहवीं शताब्दी में शेख निजामुद्दीन औलिया लिखते है कि इस्लाम के धर्मोपदेश से हिंदुओं के विचारों को नहीं बदला जा सकता है। निम्नतम स्तर के लोगों को भी अपनी जाति पर गर्व था। दुख प्रकट करते हुए औलिया कहते है कि वे धर्मान्तरण के लिए तैयार ही नहीं होते हैं।
निकोला मेनुचि लिखता है कि हिंदुओं में जाति व्यवस्था ने लोगों को जो स्वतंत्रता और सम्मान प्रदान किया है वह अन्य किसी व्यवस्था में नहीं है। विदेशी मुस्लिम भारतीय मुस्लिमों को हेय दृष्टि से देखते ह...

मराठों का वर्चस्व
शिवाजी के मरणोपरांत उनके पुत्र और पौत्रों ने मुगलों का कुछ सीमा तक विरोध किया था। वस्तुतः जो वास्तविक कार्य था वह शिवाजी की प्रेरणा से युक्त प्रशासकों ने किया था। उन्होंने मुगलों को गुरिल्ला रणनीति द्वारा परेशान कर दिया। औरंगजेब की मृत्यु के उपरांत तो मुगल साम्राज्य बडी तेजी से समाप्त होने की कगार पर आ गया। इस काल में पेशवाओं का उदय हुआ और उनका प्रभुत्व स्थापित हो गया। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात शिवाजी का पौत्र साहू जेल से आजा...

शिवाजी का अंतिम समय
दुर्भाग्य से शिवाजी के उत्तराधिकारी उतने सक्षम शासक नहीं थे[1]। उनका पुत्र संभाजी अयोग्य था। अपने पिता की मृत्यु के समय संभाजी की आयु बाईस वर्ष थी। किंतु उस समय तक वह अनेक दुर्गुणों का शिकार हो चुका था। एक बार तो वह अपने पिता के विरुद्ध ही खड़ा हो गया। शिवाजी का दूसरा पुत्र राजाराम अफीम का आदी था। अपने पुत्रों से निराश होकर शिवाजी मानसिक शांति प्राप्ति के लिए अपने गुरु समर्थ रामदास के पास गये, वे वहां उनके साथ सज्जनगढ़ में एक...

शिवाजी की विजय
शिवाजी की पहली बडी विजय अफजल खान के विरुद्ध हुई थी। बीजापुर के सुल्तान ने अफजल खान को शिवाजी का वध करने भेजा था, वह प्रतापगढ़ के किले के समीप अपने शिविर में ठहरा था। शुक्र नीति का पालन करते हुए शिवाजी ने उससे भेंट की और जब अफजल खान ने उन्हे मारने का प्रयास किया तो शिवाजी ने अपनी सुरक्षा करते हुए ‘बाघनख’ से उसका पेट फाड़ दिया और उसे मार डाला। शिवाजी के महत्त्वपूर्ण लक्षणों में उनकी शक्ति, बुद्धिमत्ता और शुक्र नीति द्वारा शत्रु पर व...

छत्रपति शिवाजी :- हिंदू धर्म के पथ प्रदर्शक
दक्षिण भारत में क्षात्र चेतना की परम्परा के एक और महानतम उदाहरण हिंदू धर्म के ध्वजवाहक शिवा-महाराज अर्थात छत्रपति शिवाजी रहे हैं। शूद्र माने जाने वाले भोंसले वंश में शिवाजी का जन्म हुआ था। शिवाजी का मूल उद्गम मेवाड़ के सिसोदिया समुदाय से रहा है अतः उन्हें राणा प्रताप परम्परा से जोड़ा जा सकता है।
उनकी माता जीजाबाई देवगिरि के यादव (अथवा जाधव) वंश की थी। शिवाजी के पिता शाहजी ने यद्यपि भाड़े के सैनिक के रू...
