November 2024

Kaalidaasa
By the time of Kālidāsa, the role and characteristic features of the vidūṣaka had taken a concrete form. The vidūṣaka in the Vikramorvaśīyam is endowed with quite a few profound qualities. One can see some of his weaknesses as well; he cannot keep a secret. The segments where the clever Nipuṇikā deceives him and the way in which he tries to hide his stupidity before the king are comical. To convince Āyuḥ Kumāra that he need not fear him, the...
शौर्य काल पिछले कुछ समय में लिखे गये भारतीय इतिहास में अनेक घटनाओं तथा प्रकरणों को अवांछित रूप से सम्मान प्रदान करते हुए महत्वपूर्ण बतलाया गया है। ऐसे अनेक विवरण दिये गये है। जिनका हमारे इतिहास में अस्तित्व ही नही था और इस प्रकार कपट पूर्वक लोगों को भ्रमित तथा गुमराह किया गया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे झूठे कथन सत्य को जानने में सबसे बडी बाधा उपस्थित करते हैं। आज की हमारी अनेक इतिहास की पाठ्यपुस्तके इसी प्रकार के कपटयुक्त लेखन के वर्ग में...
Book reviews were a constant feature in all the journals DVG edited and published. He either reviewed himself or, if he happened to spot a well-written piece, he sought the permission of the author and published it. How to put a work in perspective and appraise its value within the packed confines of journalistic writing, and, more importantly, how to infuse literary charm into the prose? DVG answers these questions with his own reviews. Sample...
The poet has clearly indicated the difference between the personalities of the queen on the one hand and Urvaśī on the other; their names are suggestive of the difference in their nature – the queen is called Auśīnarī and the apsarā is Urvaśī. The poet has compared Urvaśī to Gaṅgā and lightning, while he says Auśīnarī is like a river flowing in the rainy season and is like the wick of a lamp. The following is the description of the queen who...
अन्य राजपूत राजवंश गुर्जर चौलुक या चालुक्य वंश को सामान्य रुप से सोलंकी वंश के नाम स जाना जाता है। भीमदेव प्रथम (सन् 1022-64) अत्यधिक प्रसिद्ध था किंतु जब महमूद गजनी ने सोमनाथ पर आक्रमण किया तो वह एक डरपोक व्यक्ति की भांति अपनी जान बचाने के लिए कच्छ के सुरक्षित क्षेत्र में भाग गया। इस प्रकार उसने क्षात्र चेतना पर एक अमिट कलंक लगा दिया। इतना ही नही मूर्खता वश यह सदैव परमार भोज और कलचुरी कर्ण का भी विरोध करता रहा जो सनातन धर्म के प्रमुख संरक्षक थे...
ಕಲೆಯ ಸಮರ್ಥನೆ ವಿಷಯಾಭಾವತೋ ನಾತ್ರ ರಾಗಸ್ಯಾಭ್ಯಾಸಗಾಢತಾ | ಸ್ಥಾಯೀ ಚೇದ್ವಿಷಯೋ ನೈವಮಾಸ್ವಾದಸ್ಯ ಸ ಗೋಚರಃ || ಆಸ್ವಾದ ಏವ ರಾಗಶ್ಚೇನ್ನ ರಾಗೋ ಯೋಷಿದಾಸ್ಪದಃ | ಕಾರ್ಯಾತ್ಕಾರಣದೋಷಶ್ಚೇತ್ಕಿಂ ಸೀತಾ ವಿಷಯೋ ದ್ವಯೋಃ || ಯಥಾದರ್ಶಾನ್ಮಲೇನೈವ ಮಲಮೇವೋಪಹನ್ಯತೇ | ತಥಾ ರಾಗಾವಬೋಧೇನ ಪಶ್ಯತಾಂ ಶೋಧ್ಯತೇ ಮನಃ || ಸರ್ವಾಂಗಾನುಪ್ರವೇಶಃ ಸ್ಯಾತ್ಸಜಾತೀಯಂ ವಿನಾ ಕುತಃ | ಅತೋ ಭೋಗ್ಯೋಪದೇಶೇಽಸ್ಮಿನ್ ಭೋಗೇಷ್ವೇವಾದರೋ ಮುನೇಃ || (ಕಾವ್ಯಪ್ರಕಾಶವಿವೇಕ, ಸಂ. ೧, ಪು. ೯) ಕಲಾನುಭವದ ಕಾಲದಲ್ಲಿ ಇಂದ್ರಿಯಗ್ರಾಹ್ಯವಾದ ವಸ್ತುಗಳ ಅಸ್ತಿತ್ವವೇ ಇರದ ಕಾರಣ...
चन्देलों की उपलब्धियां कालिंजर को राजधानी बनाकर बुंदेलखंड पर शासन करने वाले चंदेल मूलतः शूद्र थे। वे अपने शौर्य के कारण क्षत्रिय बन गये। चंदेलों में हर्षपुत्र यशोवर्मा ने अपनी उपलब्धियों द्वारा स्वयं को एक विशिष्ट पहचान प्रदान की थी। उसने सीयक परमार, पालवंशी विग्रहपाल तथा कलचुरी के राजकुमार को परास्त किया था। खर्जुरवाट (खजुराहो) की विशाल मंदिर – श्रृंखला तथा चतुर्भुज नारायण देवालय आज भी इस राजा के शौर्य के साथ साथ उसकी धर्म परायणता तथा कलात्मक...
ರಸಾನುಭವದ ಅಲೌಕಿಕತೆ ಮತ್ತು ಅಧ್ಯಾತ್ಮನಿಷ್ಠೆಗಳನ್ನು ಎತ್ತಿಹಿಡಿದ ಆಲಂಕಾರಿಕರಲ್ಲಿ ಭಟ್ಟತೌತನು ಅಗ್ರಗಣ್ಯ. ಅವನದೆಂದು ಭಾವಿಸಲಾದ ಎರಡು ಶ್ಲೋಕಗಳಲ್ಲಿ ಈ ಭಾವ ಸೊಗಸಾಗಿ ಹರಳುಗಟ್ಟಿದೆ: ಪಾಠ್ಯಾದಥ ಧ್ರುವಾಗಾನಾತ್ತತಃ ಸಂಪೂರಿತೇ ರಸೇ | ತದಾಸ್ವಾದಭರೈಕಾಗ್ರೋ ಹೃಷ್ಯತ್ಯಂತರ್ಮುಖಃ ಕ್ಷಣಮ್ || ತತೋ ನಿರ್ವಿಷಯಸ್ಯಾಸ್ಯ ಸ್ವರೂಪಾವಸ್ಥಿತೌ ನಿಜಃ | ವ್ಯಜ್ಯತೇ ಹ್ಲಾದನಿಷ್ಯಂದೋ ಯೇನ ತೃಪ್ಯಂತಿ ಯೋಗಿನಃ ||[1] (ವ್ಯಕ್ತಿವಿವೇಕ, ಪು. ೯೪) (ದೃಶ್ಯಕಾವ್ಯದ) ಪಾಠ್ಯಭಾಗದಿಂದಾಗಲಿ, ಧ್ರುವಗೀತಗಳ ಗಾನದಿಂದಾಗಲಿ ರಸಪುಷ್ಟಿ ಒದಗಿದಾಗ (ಸಹೃದಯರು) ಇದರ...
Ocean
In the Vikramorvaśīyam, the poet has brought in several elements to amplify vipralambha-śṛṅgāra; as mentioned before, Purūrava gets separated thrice from Urvaśī and pines for her company. In no other play do we see the king going mad out of love for his beloved. It is likely that the playwright, Kālidāsa, wanted to provide special scope for elaborate music and enactment in his play and thus designed it to contain many such deeply emotional...
आज हमें पाल राजवंश द्वारा निर्मित कोई भी बडा पूजा केन्द्र अथवा देवालय दिखाई नहीं देता इसका एकमात्र कारण बख्तियार खिलजी तथा उसी के समान अन्य मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा किये गये रक्तरंजित द्वेषयुक्त विनाश लीला में निहित है जिसमें हजारों हिंदू मंदिरों को सतत रूप से नष्ट किया था। पालों से संबंधित आज हमें जो भी उपलब्ध है वे वास्तुशिल्प का कुछ भग्नावशेष है, कुछ तस्वीरें तथा आरेखन है जो विभिन्न म्यूसियमों में संरक्षित किये गये है – उदाहरणार्थ गरुड़...