यह दुःख का विषय है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत हमारे राजनेताओं में अधिकांशतः क्षात्र भाव का अभाव देखने में आता है।
भारत के लम्बे इतिहास में क्षात्र चेतना ने अनेक उतार चढ़ाव देखे है। जिन्होंने असाधारण उपलब्धियॉ प्राप्त कर शिखर स्थान प्राप्त किया था उन्हें भी भुला दिया गया। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण है जहाँ वीरों की संताने कमजोर सिद्ध हुई, सामान्य जन समुदाय से ऐसे शौर्यवान क्षात्र हुए जिन्होंने असाधारण उपलब्धियां प्राप्त की, कुछ ऐसे भी हुए जिन्होने अपने गलत निर्णय के कारण स्वयं को अपने ही जीवन काल में नष्ट कर लिया। इतना सब होते हुए भी, समस्त संकटों के बाद भी, भारतीय क्षात्र परंपरा के लम्बे इतिहास में उसने न केवल उच्च शिखरों को छुआ है अपितु समान रूप से अपनी भव्यता को भी बनाये रखा है।
जब भूतकाल में सिंध प्रदेश में अरब लोगों ने प्रवेश कर इस्लाम के नाम पर अपना बल प्रयोग करना प्रारम्भ किया था, मूलस्थान (मुल्तान) के सूर्य देवालय को ध्वस्त किया था, हिन्दू व्यापारियों के काफिलों को बलात् रोकना और उनसे वसूली करना प्रारम्भ कर दिया था तब भी यह सब देखते हुए भी अधिकांश हिंदू समाज गहरी नींद सोता रहा था और उसने इन लुटेरों को भगाने का कोई सार्थक प्रयास नहीं किया और न उन्होने समस्या को उसके प्रारम्भ में ही समाप्त करने का विवेक दर्शाया। उस समय के भारतवासियों को इसका तनिक भी अनुमान नहीं था कि यही समस्या दो सौ वर्षों के उपरांत उनके लिए एक अति विकट और संकटपूर्ण स्थितियॉ उत्पन्न कर देगी – और वह अन्ततः महमूद गजनवी के रूप में आ ही गई।
सन् 1857 के सामुहिक विद्रोह को भारत की स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध कहा जाता है किंतु यह संग्राम तो शताब्दियों पूर्व से ही चलता आ रहा था और आज भी चल ही रहा है। सन् 712 में जब से मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध में प्रवेश किया तब से ही यह स्वतंत्रता का संग्राम विभिन्न स्तरों पर विभिन्न स्थानों पर एक हजार वर्षों से भी अधिक समय से निरंतर लड़ा जा रहा है।
भारतवासियों ने कभी भी अपनी सीमा पार कर किसी अन्य देश पर आक्रमण नहीं किया किंतु हजार वर्षों से भी अधिक लम्बे स्वयं की सुरक्षा करने के संघर्ष में भारत ने अपने ही विस्तृत भूभागों को खो दिया है, अपनी संस्कृति, कला और समृद्धि को क्षतिग्रस्त किया है। भारत पर किये गये यह आक्रमण धार्मिक उन्माद से शक्ति प्राप्त करते हुए भारत की संपदा, महिलाओं आदि को हथियाने की लालच से प्रेरित रहे है। हमने हमारे अनेक सुन्दर तथा पवित्र स्थान, मंदिर एवं नदियां खो दी, साथ ही करोड़ों लोगों का इसमें बलिदान हो गया। इसके बाद भी हम जो बचा पाये वह महत्त्वपूर्ण तथा असाधारण है। आज भी हम अपनी जड़ों से जुड़े हुए है यह अपने आप में एक महान उपलब्धि है और यह इसलिए संभव हो सका क्योंकि हम ब्रह्म तथा क्षात्र के समन्वयात्मक आदर्श का परिपालन करते रहे है।
इन्ही आदर्शों का पोषण हो सके इसके लिए रामस्वरूप, सीताराम गोयल तथा डेविड फ्राउली जैसे विद्वानों ने ‘बुद्धिमान क्षत्रिय’ (बुद्धिमान योद्धा) जैसे शब्दों को प्रचलित किया है तथा अन्य विद्वान जैसे के.एल.लाल, बी.बी.लाल, कोनराड एल्स्ट, मिशेल डानिनो, नवरत्न राजाराम आदि भी इसी दिशा में कार्य करते रहे हैं।
प्रसिद्ध ऋग्वेद में पुरुष सूक्त के श्लोक के अनुसार प्रत्येक मनुष्य चार वर्णों से युक्त होता है – वैश्विक पुरुष का
मुख ब्राह्मण है, भुजाऍ क्षत्रिय है, जंघाओं से वैश्यों की उत्पत्ति हुई है तथा उसके पाँवों से शूद्र पैदा हुए है[1]
हमारा पतन उसी दिन से प्रारम्भ हो गया था जब से हमने उक्त तथ्य की अनदेखी करना शुरु कर दिया था।
यह हमारा नित्य अनुभव है कि अधिकतर समय में हम अपने हाथों से ही कार्य संपन्न करते है यदि हमें वेदांग द्वारा वेदों को समझना है तो कल्पसूत्रों की भूमिका आवश्यक हो जाती है। कल्पसूत्रों की संख्या बडी विस्तृत है। हमारी परम्परा में सांकेतिक दृष्टि से ‘वेदपुरुष’ की भुजाओं के रूप में कल्पसूत्रों को दर्शाया गया है। कल्प का पारिभाषिक अर्थ वेदों की कल्पसूत्रों के अनुसार अभिव्यक्ति तथा उपयोग है।
तदनुसार हम वैश्विक पुरुष की भुजाओं के रूप में क्षात्र और वेदपुरुष की भुजाओं के रुप में कल्पसूत्रों के मध्य की समानता को पहचान सकते है।
समाज में एक क्षात्र की भूमिका तथा उसका उत्तरदायित्व सबसे महत्वपूर्ण होता है। जो क्षात्र भाव व उसका आदर्श वैश्यों तथा शूद्रों के आदर्शों को पोषित तथा सुरक्षित करता है वह भी प्रकारान्तर से ब्रह्म के दार्शनिक निर्देशन में पोषित होता है। इस कारण क्षात्र चेतना की ज्योति को कभी भी मंद नहीं होने देना चाहिए क्योंकि विश्व का मानवीय जीवन इसी से प्रकाशित हो पाता है।
यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि सनातन धर्म द्वारा निर्देशित जीवन को सदैव पोषित किया जाना आवश्यक है। इसके दिये में हमें अपने मैत्रीभाव तथा अथक श्रम का तेल डालते रह कर इसे सदा प्रकाशित किये रखना है। हमें अपने राजर्षियों तथा चक्रवर्तियों से प्रेरणा लेकर इसी बात पर कभी भी भीरुता की कालिमा को चढने नही देना है। हमें महादेव रुद्र की वीणा के तारों को सदैव शौर्य भाव के संगीत से गुंजायमान रखना है। साथ ही साथ हमें शांति तथा समता-सहिष्णुता के नगाडे को भी बजाते रह कर समस्त मानवीय समाज में सुख शांति का मधुमय प्रसाद बांटते रहना है।
आज के प्रजातंत्र में हमारी भारतीय क्षात्र परम्परा का आदर्श
यह सत्य है कि भारतीय क्षात्र परम्परा ने अनेक उतार चढाव तथा सैकडों पराजयों का सामना किया है जहां व्यापक रूप से लोगों की मृत्यु हुई थी। वास्तव में हमारे राजाओं, महाराजाओं तथा अन्य महान क्षत्रिय योद्धाओं की अदूरदर्शिता, अनुपयुक्त उदारता तथा अनावश्यक अहंकार के कारण उन्होंने अपने सम्मान, सम्पदा और संस्कृति को पाशविक आक्रमणों के विरुद्ध लड़ते हुए खो दिया। हमारे अनेक राजा स्वार्थी तथा संकुचित सोच वाले भी थे और वे सनातन धर्म के लिए घातक प्रमाणित हुए। कुछ राजा भोग और विलासिता के आदी थे और वे आसानी से शत्रुओं के षड़यंत्रों के शिकार बन कर स्वयं अपने ही देश के लिए व प्रजा के लिए दुस्वप्न सिद्ध हुए।
इन सब त्रुटियों के बाद भी, पूरे परिप्रेक्ष्य के सन्दर्भ में हमारे राजाओं ने सनातन धर्म का पालन करते हुए अपने ईमानदार प्रयास किये थे। और इसमें उन्हें सफलताऍ भी मिली थी। ऐसा भी नही है कि ऐसी घटनाएं मात्र भारत वर्ष अथवा केवल हिंदू साम्राज्यों के साथ ही हुई हो। यदि हम विश्व के पटल पर बड़े साम्राज्यों या लम्बी अवधि तक रहे राजवंशों के इतिहास का परीक्षण करें तो वहां भी हमें ऐसे ही उतार-चढाव देखने में आते हैं। विश्व के इतिहास में बडे से बडे और सर्वाधिक समय तक रहने वाले साम्राज्य की भी अधिकतम अवधि दो सौ पचास वर्षों से अधिक नहीं रही है। यह एक सामान्य मनुष्य के तीन या चार पीढ़ियों का समय होता है। इसमें भी साम्राज्य का वैभव काल और भी छोटा होता है। इसमें कोई भी देश अपवाद नहीं है।
To be continued...
The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.
Footnotes
[1]ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥ (ऋग्वेद संहिता 10.90.12)














































