मध्य भारतीय मुस्लिम साम्राज्य जैसे अहमदनगर, बरार, बीदर, गोलकुण्डा, बीजापुर, गुलबर्गा आदि सतत रूप से लड रहे थे जिसमें यदाकदा विजयनगर का राजा किसी भी एक मुस्लिम राज्य का पक्षधर हो जाता था। इतिहासकारों के अनुसार रामराय ऐसे राजनैतिक दांवपेच किया करता था जो उसका एक कूटनीतिक हथियार था, किंतु जब उसके संबंध पुर्तगालियों से खराब हुए और उसे उसके विरुद्ध कूटनीतिक असफलता प्राप्त हुई तो उसने उन्हें युद्ध में हराते हुए उनके एक लाख पैगोडा छीन लिए। यद्यपि वह शक्ति संपन्न तथा योग्य था किंतु राजनैतिक कौशल की उसमें कमी थी। वह समस्याओं के मूल की पहचान नहीं कर पाया था। उसकी एक बड़ी भूल यह भी रही कि वह अपने मुस्लिम सेना-प्रमुखों पर पूरा भरोसा करता रहा। वह उन अनेक उदाहरणों को अनदेखा कर गया जब धार्मिक आस्था व्यक्ति को अन्याय पूर्ण धोखा छडी के कृत्य में संलग्न कर देती है। इस्लाम का प्रश्न आते ही प्रत्येक मुस्लिम अन्य गैर मुस्लिमों के प्रति हर समय और हर स्थान पर अन्यायपूर्ण ढंग से व्यवहार करते आये है और वे सदा यह विश्वास करते है कि उनका यह कार्य ही पूर्णतः न्याय संगत है।
मुस्लिम इतिहासकार फरिश्ता ने रामराय पर मुस्लिम महिला का अपमान करने का आरोप लगाया है। मुस्लिम मित्रों के कारण हो सकता है रामराय के किसी मुस्लिम महिला से संबंध रहे हो, यद्यपि यह एक छोटा सा कारण हो सकता है किंतु यह समस्या की मूल जड़ नहीं है। इसका प्रमुख कारण यह है कि विजयनगर के वैभवशाली हिंदू साम्राज्य को समाप्त करने के उद्देश्य से सब मुस्लिम सैन्य बल एक हो गये।
सीजर फ्रेडरिक जो युद्ध का स्वयं साक्षी था कहता है कि युद्ध के समय रामराय के दो मुस्लिम सेनापति अपनी एक लाख तथा डेढ़ लाख सैन्य शक्ति के साथ दुश्मनों से जा मिले। इसके विजयनगर सेना में भगदड़ मच गई। स्थिति ऐसी भी आई कि वे बिना लड़े भागने लगे जिसमें अनेक लोग मारे गये।
बहमनी राजा अली आदिल शाहि ने रामराय से तटस्थता का वादा किया था किंतु युद्ध में वह भी मुस्लिमों का पक्षधर हो गया। उसकी तटस्थता का खेल भी मुस्लिम रणनीति का एक अंश था।
इस प्रकार इस्लामिक कट्टरवाद तथा छल छद्म द्वारा विजयनगर की सेना का विनाश हो गया। रामराय की हार के उपरांत छः मास तक विजयोन्मत मुस्लिम विजयनगर को लूटते रहे। यह युद्ध कृष्णा नदी से पच्चीस मील दूर ग्राम रक्कसंगी और तंगडगी के बीच के खुले क्षेत्र में लड़ा गया था। युद्ध के तीन दिनों में ही वेंकटाद्री, तिरुमलाद्री आदि ने अनेक सैनिकों के साथ हाथियों, ऊंटों और रथों में बहुमूल्य सामान भर कर पेनुगोंडा और चन्द्रगिरी पहुचा दिया था फिर भी मुस्लिम छः माह तक विजयनगर से लूट में बड़ी संपदा पाते रहे इन्ही के साथ उस क्षेत्र के चोर और डाकू भी समान रूप से शासकीय खजाने को लूटते रहे। उन्होंने विरुपाक्ष स्वामी देवालय को उसके स्थान से हटा दिया तथा सभी क्षेत्रीय मंदिरों को क्षति पहुंचाई।
कुछ दुस्साहसी विद्वानों ने इस क्षति को शैव-वैष्णव कलह का कारण दर्शाया है किंतु यह पूर्णतः एक झूठा प्रचार है। विजयनगर में शैव, वैष्णव, जैन, यहूदी, मुस्लिम, ईसाई आदि सभी समुदाय के लोग रहते थे। रामराय ने सुनिश्चित किया था कि उसके राज्य में सभी मत-पंथ के लोग सामंजस्य पूर्ण ढंग से रह सके किंतु वह मुस्लिमों के इस निर्मम आक्रमण का सामना नहीं कर पाया।
हर बार की तरह इस बार भी विजयनगर साम्राज्य स्वयं की सैन्य शक्ति को आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों तथा उपकरणों से सुसज्जित नही कर पाया था और यह भी उसकी हार का एक कारण बन गया। कृष्णदेवराय स्वयं अपनी सेना का नेतृत्व कर युद्ध में विजय पाता था किंतु इस महायुद्ध के समय रामराय नब्बे वर्ष का वृद्ध था तथा पालकी में बैठ कर युद्ध का निरीक्षण करता रहा था। ऐसे ही समय में उसके शत्रुओ ने उसे बंदी बना लिया। उसकी गर्दन काट कर उसके धड़ को भाले पर टांग कर रणभूमि में ऊंचा कर घुमाया ताकि विजयनगर के सैनिक हताशा से भर जायें – यह एक साक्षी का विवरण है।
हारा हुआ विजयनगर साम्राज्य फिर दोबारा खड़ा नहीं हो सका इस साम्राज्य के साथ एक महान परम्परा का भी अंत हो गया। यह एक महान हिंदू साम्राज्य के पतन की व्यावहारिक स्तर पर हार की कहानी है।
राजपूत – कुशल अग्रणी योद्धा
सनातन धर्म के संकटकाल में मुस्लिमों द्वारा किये गये आक्रमणों का सामना राजपूतों ने किया था। राजपूतों ने अपनी अविस्मरणीय शौर्य तथा असाधारण बलिदान द्वारा जो योगदान प्रदान किया है उसे इतिहास कभी भूल नही सकता । हमेशा की भॉवि हमारे कुछ तथाकथित ‘विद्वान’ अपनी कल्पना युक्त सोच के कारण दावा करते है कि राजपूत मूलतः भारतीय नहीं हैं। यह एक झूठ है। उनका यह भी दावा है कि राजपूतों में पारस्परिक रूप से बहुत लड़ाईयॉ होती रही है। किंतु विश्व में ऐसी न तो कोई जाति है और न समुदाय जिसमें आन्तरिक संघर्ष न होता रहा है।
यह अधिक लोगों को ज्ञात नहीं है कि मुगलों का भी अनेक मुस्लिमों ने विरोध किया था। यह इतना बढ़ गया था कि अकबर को चांदबिबी नामक महिला से युद्ध करना पड़ा था। मुगल लोग लम्बे समय तक बंगाल के पठानों तथा दक्षिण के बहमनी लोगों से युद्ध करते रहे थे।
तैमूर, इब्राहिम लोदी, नादिर शाह, तथा अन्य इस्लामिक योद्धाओं को अन्य मुस्लिम सैन्य शक्तियों से लड़ना पड़ा था। उनकी आपसी लड़ाइयां एक सामान्य स्थिति थी। शेरशाह सूरी, हुमायूँ, बैरम खान और अकबर आदि के मध्य की शत्रुता जैसी घटनाओं की एक लम्बी सूची है और इसके परिणाम भी बडे मर्मान्तक रहे है। अलाउद्दीन खिलजी ने स्वयं अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या कर दी, शाहजहां और औरंगजेब ने निर्दयता पूर्वक अपने ही भाइयों की हत्याऍ की। यह सब पारिवारिक कलह को उजागर करने वाले संकेत है। ऐसी स्थिति में यह दावा करना कि ‘इस्लाम एकता का महान वाहक’ है मात्र एक झूठा प्रचार है।
राजपूतों द्वारा प्रदर्शित असीम साहस, उपलब्धियां तथा संकटग्रस्त स्थितियों से पार पाने के कृत्य वस्तुतः पौराणिक गाथा की कथावस्तु के समान है। जहां एक ओर उन वीर योद्धाओ ने तलवार से युद्ध के मैदान में अपनी कहानी लिखी वहीं कवियों ने भी उनकी शौर्य गाथाओं को कथात्मक गीतो में लिखकर साहित्य की एक नई विधा ‘रासो’ को जन्म दिया। उनकी कविताओं की प्रत्येक पंक्ति वीर रस से भर कर गौरवमयी भावना जागृत करती है।
राजपूत अर्बुदा देवी (माउंट आबू के शीर्ष पर स्थित शक्ति पीठ) के भक्त रहे हैं। यह पार्वती माता के इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। राजपूतों के तीन वर्ग है – मारवाड के मारवाडी, जयपुर, अजमेर के अजमेरी तथा मेवाड़ जोधपुर के मेवाड़ी। मेवाड़ी राजपूत सिसोदिया वंश के है। इन सभी राजपूत परिवारों का मूल परमार, चंदेल और प्रतिहारो में निहित रहा है। सामाजिक स्तर पर पहले यह सभी निम्न वर्ग से संबंधित रहे किंतु अपने शौर्य के कारण उन्होंने उन्नति करते हुए प्रमुखता प्राप्त की। मुस्लिमों के निरंतर आक्रमणों को झेलते झेलते दुर्भाग्य वश उन्हें पुनः जंगलों में शरण लेने को बाध्य होना पड़ा और अंततः वे ‘आदिवासियों’ की स्थिति प्राप्त कर गये। उदाहरण के लिए अकबर के आदेश पर लोहार जाति को गांव तथा शहरों में आना प्रतिबंधित कर दिया गया था जिससे उन्हें बंजारों का जीवन जीना पड़ा और जंगलों में रहना पडा।
To be continued...
The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.