April 2025

महाराणा प्रतापसिंह : एक अद्वितीय योद्धा महाराणा प्रतापसिंह (महाराणा प्रताप) भारत के क्षात्र भाव के सबसे अधिक चमकीले हीरे है। वे उदयसिंह के तेईस (23) बच्चो में सबसे बडे थे। वह सिसोदिया वंश के योद्धा कुल में कुंभल गढ़ में जन्में थे। ‘एकलिंग स्वामी’ इनके परिवार के कुल देवता थे। अपने बचपन से ही उनमें महान योद्धा बनने के लक्षण दिखलाई देते थे। सन् 1572 में उदयसिंह की मृत्यु के उपरांत उसकी सबसे छोटी रानी का बेटा जगमल शासनासीन हुआ किंतु प्रजाजनों के...
  “ಕನ್ನಡಸಾಹಿತ್ಯವನ್ನು ಓದಬೇಕು ಎಂದು ಬಯಸುತ್ತಿರುವ ನಮ್ಮ ಮುಂದಿನ ತಲೆಮಾರಿನ ಮಕ್ಕಳಿಗೆ ನಾವು ಹೇಗೆ ಮಾರ್ಗದರ್ಶನ ಮಾಡಬಹುದು? ಅವರು ಯಾವುದನ್ನು ಮೊದಲು ಪ್ರಾರಂಭಿಸಬೇಕು? ಯಾವ ಲೇಖಕರಿಂದ ಪ್ರಾರಂಭಿಸಿದರೆ ಓದಿನಲ್ಲಿ ಆಸಕ್ತಿ ಬೆಳೆಯುತ್ತದೆ? ಯಾವ ಯಾವ ಲೇಖಕರು ಯಾವ ಯಾವ ರೀತಿಯ ಸಾಹಿತ್ಯವನ್ನು ರಚಿಸಿದ್ದಾರೆ? ಅವು ಯಾವ ಯಾವ ವಯಸ್ಸಿನ ವಿದ್ಯಾರ್ಥಿಗಳಿಗೆ ಸುಬೋಧವಾಗಿರಬಹುದು? ಮೊಬೈಲು, ಅಂತರ್ಜಾಲದ ಸಾಮಾಜಿಕ ಮಾಧ್ಯಮಗಳ ಈ ಕಾಲದಲ್ಲಿ ಓದುವ ಹವ್ಯಾಸವನ್ನು ಹೇಗೆ ಬೆಳೆಸಬೇಕು?” ಎಂಬ ಅನೇಕ ಪ್ರಶ್ನೆಗಳನ್ನು ನಾವೆಲ್ಲ ಸ್ನೇಹಿತರು ಹಲವು ಬಾರಿ...
Alankara-sudhanidhi
४.७. अलङ्कारसुधानिधेः सारः शास्त्रपरम्परायां तत्स्थानं च सायणाचार्यविरचितः अलङ्कारसुधानिधिः ध्वन्यालोकं पुरस्कृत्य काव्यप्रकाशम् अनुसृत्य च काव्यमीमांसायाः प्रमुखाणि प्रमेयाणि सङ्कलय्य विशदयति। बुक्कमहीपतौ विजयनगरं शासति सामाजिके सांस्कृतिके साहित्यके राजनैतिके च क्षेत्रे का स्थितिरासीत्, कानि विक्रमोदग्राणि कार्याणि साधितानि चेति ग्रन्थेनानेन बुध्यते। सायणाचार्यस्य करणत्रयगरिमाणं प्रकाशयन्त्यसौ कृतिः कृतिनो भोगनाथस्य पेशलकाव्यप्रणयनकौशलं...
मेवाड़ के महा क्षत्रिय राजपूतों में संभवतः मेवाड़ का राजवंश श्रेष्ठतम है। मेवाड़ का केंद्र चित्रकूट (चित्तौड़) है। ऐसा प्रतीत होता है मानों एक बहुत बडे समतल भूभाग पर एक पहाड़ अचानक खड़ा हो गया है। इस पर्वत शिखर तथा उसके आसपास तक फैला अभेद्य किला चित्तौड़ का केंद्र स्थान है। यह मात्र सामरिक किला ही नहीं है किंतु यहां अत्यंत मनोहारी शिल्प कृतियों का भंडार भी है। यहीं पर भोज द्वारा निर्मित महादेव मंदिर तथा मीराबाई द्वारा निर्मित कृष्ण मंदिर भी है।...
Alankara-sudhanidhi
४.६. उदाहरणपद्यानि भोगनाथविरचितानि उदाहरणपद्यानि सायणाचार्यविजयनगरसाम्राज्यसम्बद्धानेकविषयस्फोरकाणीति प्रागेव प्रत्यपादि। अत्र विप्रतिपद्यमानाः केचिदाचक्षीरन्—काव्यसहजया नैकालङ्कारभूषितया शैल्या सन्दृब्धानि पद्यानीमानि सत्यदूराणीति। नैवं युक्तं वक्तुम्। सालङ्कारा शैली भूषणमेव न दूषणमिति इहोदाहरिष्यमाणानि पद्यान्यवलोक्य बोद्धुम् अर्हन्ति सन्तः॥ ४.६.१. वैदुष्यं सम्प्रदायश्रद्धा च भगवत्याः श्रुतेः काण्डद्वयेऽपि कृतावगाहः सायणाचार्यः श्रौतविद्यायां...
Raama-Seeta-Lakshmana
One of the manuscripts of the Mālatī-mādhava states that the work was authored by Bhaṭta-kumārila’s student (prose at the end of Act 3); the colophon at the end of the sixth act in same manuscript says that Umbekācārya authored it; furthermore, the colophon at the end says Kumārila’s student Bhavabhūti penned the play. From this, it is reasonable to think that Bhavabhūti is no different from Kumārila’s student Umbekācārya. However, we must...
मध्य भारतीय मुस्लिम साम्राज्य जैसे अहमदनगर, बरार, बीदर, गोलकुण्डा, बीजापुर, गुलबर्गा आदि सतत रूप से लड रहे थे जिसमें यदाकदा विजयनगर का राजा किसी भी एक मुस्लिम राज्य का पक्षधर हो जाता था। इतिहासकारों के अनुसार रामराय ऐसे राजनैतिक दांवपेच किया करता था जो उसका एक कूटनीतिक हथियार था, किंतु जब उसके संबंध पुर्तगालियों से खराब हुए और उसे उसके विरुद्ध कूटनीतिक असफलता प्राप्त हुई तो उसने उन्हें युद्ध में हराते हुए उनके एक लाख पैगोडा छीन लिए। यद्यपि वह...
Alankara-sudhanidhi
४.२. गुणदोषौ शरीरगताः शौर्यादयो गुणा आत्मानमिव काव्यशरीरगताः प्रसादादयो गुणाः काव्यात्मानं रसम् उत्कर्षयन्ति— शौर्यादय इवात्मानं ये धर्मा अङ्गिनं रसम्। उत्कर्षयन्ति नियतस्थितयस्ते गुणा इह॥ १.१११ नयन्ति नित्यमुत्कर्षं समवायाद्रसं गुणाः। शौर्यादय इवात्मानं शरीरेषु शरीरिणाम्॥ १.११३ गुणानां रसधर्मत्वम् अभ्युपगच्छन् सायणाचार्यः शब्दार्थमात्रगोचरांस्तान् कथयतः शास्त्रकृतः प्रत्याचष्टे— इत्थं रसैकधर्मत्वं गुणानामुपपादितम्। भ्रान्त्यैव केवलं...
Navilugari
Bhavabhūti is the author of three plays, namely – Mahāvīra-carita, Mālatī-mādhava, and Uttara-rāma-carita. It is quite probable Mahāvīra-carita was the first play that he penned. In the play, he narrates his biographical details as follows – अस्ति दक्षिणापथे पद्मपुरं नाम नगरम् । तत्र केचित् तैत्तिरीयाः काश्यपाश्चरणगुरवः पङ्क्तिपावनाः पञ्चाग्नयो धृतव्रताः सोमपीथिन  उदुम्बरनामानो ब्रह्मवादिनः प्रतिवसन्ति | तदामुष्यायणस्य तत्रभवतो वाजपेययाजिनो...
भारतीय विद्या भवन द्वारा इतिहास के अनेक खण्ड ग्रंथ भारतीय इतिहास के सत्य को दर्शाने हेतु प्रकाशित हुए है। आर. सी. मजूमदार लिखते है -  सम्पादक का यह प्रयास रहेगा कि वह तीन सिद्धांतों का पालन कर सकें – इतिहास किसी व्यक्ति या समुदाय के सम्मानार्थ नहीं है, इसका लक्ष्य सत्य का वह प्रस्तुतिकरण है जो इतिहासकारों द्वारा मान्य ठोस मानकों पर आधारित हो और तीसरा बिना डर, द्वेष, दुर्भावना, पूर्वाग्रह, या भावावेश, राजनैतिक अथवा मानवीय, अतिरिक्त प्रभावों से...