July 2025

मराठों का वर्चस्व
शिवाजी के मरणोपरांत उनके पुत्र और पौत्रों ने मुगलों का कुछ सीमा तक विरोध किया था। वस्तुतः जो वास्तविक कार्य था वह शिवाजी की प्रेरणा से युक्त प्रशासकों ने किया था। उन्होंने मुगलों को गुरिल्ला रणनीति द्वारा परेशान कर दिया। औरंगजेब की मृत्यु के उपरांत तो मुगल साम्राज्य बडी तेजी से समाप्त होने की कगार पर आ गया। इस काल में पेशवाओं का उदय हुआ और उनका प्रभुत्व स्थापित हो गया। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात शिवाजी का पौत्र साहू जेल से...

Preface
(Maṅgalam)
सामोपायनयप्रपञ्चपटवः प्रायेण ये भीरवः
शूराणां व्यवसाय एव हि परं संसिद्धये कारणम्।
विस्फूर्जद्विकटाटवीगजघटापीठैकसञ्चूर्णन-
व्यापारैकरसस्य सन्ति विजये सिंहस्य के मन्त्रिणः ॥
~ Subhāṣitaratnabhāṇḍāgāra, 2nd Prakaraṇa, Vīra-praśaṁsā
The Kṣāttra spirit or the spirit of valour — that fiery, resolute force of righteous power — is not merely a part of Sanātana-dharma; it is its pulse, breath, and blade of sacred resistance. It...

Bhavabhūti has not included a vidūṣaka in any of his plays – the exclusion maybe because Bhavabhūti felt that he is not endowed with lively and sweet emotions, or probably because he felt that the plot of his plays did not demand the inclusion of such a character; he might have also felt that it was impossible to include a vidūṣaka for the communication of the philosophy he had in in mind. His plays lack hāsya even in instances where it could...

शिवाजी का अंतिम समय
दुर्भाग्य से शिवाजी के उत्तराधिकारी उतने सक्षम शासक नहीं थे[1]। उनका पुत्र संभाजी अयोग्य था। अपने पिता की मृत्यु के समय संभाजी की आयु बाईस वर्ष थी। किंतु उस समय तक वह अनेक दुर्गुणों का शिकार हो चुका था। एक बार तो वह अपने पिता के विरुद्ध ही खड़ा हो गया। शिवाजी का दूसरा पुत्र राजाराम अफीम का आदी था। अपने पुत्रों से निराश होकर शिवाजी मानसिक शांति प्राप्ति के लिए अपने गुरु समर्थ रामदास के पास गये, वे वहां उनके साथ सज्जनगढ़ में एक...