पंद्रहवीं शताब्दी में शेख निजामुद्दीन औलिया लिखते है कि इस्लाम के धर्मोपदेश से हिंदुओं के विचारों को नहीं बदला जा सकता है। निम्नतम स्तर के लोगों को भी अपनी जाति पर गर्व था। दुख प्रकट करते हुए औलिया कहते है कि वे धर्मान्तरण के लिए तैयार ही नहीं होते हैं।
निकोला मेनुचि लिखता है कि हिंदुओं में जाति व्यवस्था ने लोगों को जो स्वतंत्रता और सम्मान प्रदान किया है वह अन्य किसी व्यवस्था में नहीं है। विदेशी मुस्लिम भारतीय मुस्लिमों को हेय दृष्टि से देखते है। वे हिन्दुओं तथा धर्मान्तरित मुसलमानों को ऊंची स्थितियों पर नियुक्त नहीं करते है। ऊंचे पद केवल तुर्क अथवा विदेशी मूल के मुसलमानों के लिए ही आरक्षित थे।
औरंगजेब द्वारा बडे बडे वादे किये जाने पर तीन राजाओं ने मुसलमान बनना स्वीकार कर लिया किंतु उनकी खतना होने के बाद उनके राज्य उनसे छीन लिये गये, उन्हे मात्र राजकीय उपाधि दे दी गई किंतु निर्वाह हेतु अति अल्प साधन प्रदान किये[1]।
मेनुचि आगे लिखता है कि उन्हें कोई सम्मान प्राप्त न हो सका तथा उन्हे हमेशा शिकायत रही – वे पछताते रहे कि उन्होंने ऐसा अनुचित निर्णय क्यों लिया कि वे दासत्व की स्थिति को प्राप्त हो गये।
मुस्लिम समुदाय में निम्न जातियों को समानता का अधिकार प्राप्त कर पाना असंभव था[2]।
इससे स्पष्ट है कि अधिसंख्य अवसरों पर धर्मान्तरण के लिए बल प्रयोग व हिंसा का सहारा लिया गया था। अकबर के समय में धर्मान्तरित हिंदू पुनः अपने धर्म में लौट आये थे। जहांगीर ने ऐसे धर्म में वापसी करने वालों के लिए मृत्युदंड का आदेश दे रखा था और शाहजहां ने भी यही किया था।
प्रसिद्ध इतिहासकार के.एस. लाल ने अपनी पुस्तक ‘इंडियन मुस्लिमस: वे कौन है?’ में विस्तार से भारतीय मुस्लिम और उनके उद्भव पर विमर्श किया है – अपने अन्य पुस्तक ‘ग्रोथ आफ शेड्यूल्ड ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स इन मीडिएवल इंडिया’ में लाला ने स्पष्ट प्रमाण दिये है कि किस प्रकार से हिंदुओं की विभिन्न जनजातियों और पिछड़े वर्ग के लोगों ने सनातन धर्म की सुरक्षा करने तथा उसे शक्ति प्रदान करने हेतु परिश्रम किया था। उन्होंने उनकी सूची भी दी है।
आज जिन समुदायों को ‘शेड्युल्ड कास्ट्स’, ’शेड्यूल ट्राइब्स’ तथा ’अन्य पिछड़ा वर्ग’ में अलग अलग वर्गीकृत कर दिया गया है वे सब मध्य काल में एक ही वर्ग में पहचाने जाते थे। हिन्दू समाज में निम्न वर्ग से संबंधित लोगो ने भी इस्लामिक आक्रमणों के विरुद्ध उसी उत्साह और दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ संघर्ष किया था जितना उच्च कुल के राजाओं तथा जमींदारों ने किया था। इन निम्न वर्ग और जाति के लोगो ने मध्य युगीन भारत के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक इतिहास में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किय है। पूर्वी बंगाल और आसाम के मूल निवासी में गारो, रभास, मेछ्स, लालुंगो, लुसाइस, कुकीस, कोचस, मनिपुरी, नागा, खासी, मिरि, अहोमस और कई अन्य समुदाय के लोग थे। मध्य भारत में किसी समय भील, गौंड, सहरिया, तथा अन्य जन जातियों के पूर्वर्ज रहा करते थे। कलचुरी (हेह्य या चेदी), धार के परमार, ग्वालियर के तॅवर, नरवर के कछवाह, कन्नोज के राठौड और कलिंजर के चंदेलो ने राजपूत समुदाय के साथ जुडकर हिंदू संस्कृति का अनुसरण करते रहे। पश्चिमी भारत में भी छोटे माने जाने वाले वर्ग के लोग जैसे जाट, गुर्जर, बलाई, माली, कच्छी, तेली, गडरिया, धाकड़ और कुम्हार लोग थे, साथ में सर्वाधिक संख्या में भील लोग थे। मध्यकाल के उत्तर प्रदेश में चमार, अहीर, ब्राह्मण, राजपूत, कोरी, कुर्मी, तथा भोस लोग थे जिनमें चमारो का समुदाय सबसे बडा था। यह गलत रूप से प्रचारित किया गया है कि निम्न जाति के लोग उच्च जाति के लोगों की तुलना में आसानी से धर्मान्तरित कर दिये गये थे। चमारों की बडी संख्या ही यह सिद्ध कर देती है कि उन्होने धर्मान्तरण नही किया था। मुसलमानों में कोई चमार नहीं होता है[3]।
इस प्रकार के. एस. लाल जैसे असाधारण विद्वान ने अनेक लिखित प्रमाणों का संकलन कर उन्हे प्रकाशित किया है। इसी प्रकार का कार्य रामस्वरूप, सीताराम गोयल तथा और अरुण शौरी ने भी किया है।
मुस्लिम शासन में हिंदुओं का असहनीय उत्पीड़न
औरंगजेब के मरणोपरांत मुगल साम्राज्य छिन्न भिन्न हो गया। वस्तुतः औरंगजेब के समय से ही यह प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई थी। मुस्लिमों के हिंसक व्यवहार तथा दमनात्मक धर्मान्तरण के कारण अनेक हिंदुओं पर अत्याचार तथा आक्रमण किये गये थे। इस कारण हिंदुओं के हृदय में इस्लाम के प्रति गहरी घृणा की भावना पैदा हो गई थी जिसने बदला लेने की भावना जागृत कर दी थी। सनातन धर्म की भूमि पर हिंदू पैदा होना और हिंदू होकर जीना एक अपराध बना दिया गया था। मुस्लिम शासन में जो मुस्लिम नहीं थे उन पर बड़े क्रूर कराधान लगा दिये गये जिससे अपनी ही मातृभूमि में हिंदुओं की स्थिति अति दयनीय हो चुकी थी। इस्लामिक साम्राज्य में प्रत्येक नागरिक पर जो मुसलमान नहीं था और स्थायी निवासी के रूप में रह रहा था उस पर जजिया कर लगाया गया था। प्रत्येक मुस्लिम आक्रमणकारी ने जजिया कर को कर्त्तव्य भाव के साथ भारतीय जनमानस पर लगाया। केवल औरंगजेब या अन्य शासको ने ही नही अपितु इस पाशविक कर को भारत भूमि पर मात्र सत्तावन दिन रहने वाले लुटेरे आक्रमणकारी नादिर शाह ने भी हिन्दुओं से वसूला। अतः पूरे समय शासन करने वाले बादशाहों के बारे में क्या कहा जाते?
To be continued...
The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.
Footnotes
[1]स्टोरिया डू मोगर, खण्ड 2, पेज 436
[2]इस बात के ठोस प्रमाण है जो इस दुष्प्रचार को झूठा सिद्ध करते है कि हिंदुओं ने जाति प्रथा तथा ब्राह्मणों के षड़यंत्र के कारण इस्लाम स्वीकार किया। इस बात के समुचित प्रमाण है कि इस्लामिक हिंसा के कारण हिंदुओं का इस्लाम में धर्मान्तरण हुआ है। यह एक ऐतिहासिक सत्य है जिसे झुठलाया नही जा सकता है।
[3]ग्रोथ ऑफ शेडुल्ड कास्ट्स एंड ट्राइब्स इन मीडिएवल इंडिया’, नई दिल्ली, आदित्य प्रकाशन, 1995 पेज 7













































