प्रतिष्ठा से वंचित सम्राट – हेमचन्द्र विक्रमादित्य
भारत के लम्बे इतिहास में कुछ युद्ध बडे निर्णायक सिद्ध हुई। पानीपत की तीनो लड़ाइयां इस दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है। यदि इन लडाइयों के परिणामों में थोड़ा भी परिवर्तन हो जाता तो भारत का भविष्य पूर्णतः बदल जाता। ऐसी ही एक लड़ाई में मारा गया महान योद्धा हेमू अर्थात हेमचन्द्र विक्रमादित्य था।
दो शताब्दियों तक दिल्ली पर इस्लामिक सल्तनत के बाद सनातन धर्म को दिल्ली के शासन पर पुनः स्थापित कर पाने का श्रेय हेमचन्द्र को जाता है। न तो वह किसी राजवंश का था और न महाज्ञानी था। वह एक सामान्य छोटा सा व्यापारी था। इस निम्न स्थिति से उठते हुए वह दिल्ली का सम्राट बन गया था। किंतु हमारे तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी इतिहास ने हेमू को एक विश्वासघाती और हठी व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है।
हेमचन्द्र बनिया जाति का फल और सब्जी का व्यापारी था। उसका जन्म अलवर प्रांत के गरीब धनसर परिवार में हुआ था। जब वह रेवाड़ी में अपना धंधा करता था तब सेना के कर्नल इस्लामशाह की दृष्टि उस पर पडी थी। शीघ्र ही वह दिल्ली के बाजार का निरीक्षक बन गया। इसके बाद उसने गुप्तचर बनकर अपनी सेवाऍ प्रादन की । बाद में वह आदिलशाह का प्रधान मंत्री बन गया। बंगाल के शासक सुल्तान मोहम्मद को उसने अनेक बार हराया, उसने मोहम्मद के भाईयों ताजखराणी और रुक्णाखराणी को भी हरा कर प्रसिद्धि पाई थी। वह मुझारिज खान से बाईस बार लडा और हर बार उसे परास्त किया। आदिल शाह के अंतिम समय में वह राजा बन गया था। यह वह समय था जब हुमायून निर्वासित होकर भटक रहा था। हेमचन्द्र ने लगभग पन्द्रह वर्षों तक दिल्ली पर शासन किया था। इस समय में उसने विक्रमादित्य की उपाधि ग्रहण की थी। उसने ‘राजाविक्रमादित्य’ शब्दों से उत्कीर्ण सिक्के बी प्रचलित करवाये थे। 5 नवंबर 1556 को उसने अकबर के विरुद्ध पानीपत की दूसरी लडाई लडी थी। युद्ध के समय एक तीर उसकी आंख में घुस गया और युद्ध से उसका नियंत्रण समाप्त हो गया तथा शत्रुओं ने उसे बंदी बना लिया। विंसेन्ट ए. स्मिथ लिखते है [1]–
बैराम खान चाहता था कि अकबर को ‘गाजी’ (अर्थात् काफिरों का हत्यारा) की पदवी प्राप्त हो, अपने अभिभावक के निर्देश पर किशोर वय के अकबर ने अपने तुर्क खंजर से बंदी की गर्दन पर प्रहार किया। इसके सात ही वंहा उपस्थित सभी लोगो ने हेमू के शव पर तलवारों से वार किये। उसके सिर को काबुल भेज दिया गया और धड़ को दिल्ली के एक दरवाजे पर टांग दिया गया। इसके उपरांत उसके घर पर हमला किया गया। अकबर के सेना के कर्नल नासिर मलिक ने उसके वृद्ध 80 वर्षिय पिता को घसीटते हुए इस्लाम धर्म कबूल करने को बाध्य किया किंतु वृद्ध ने कहा कि आजीवन सनातनी रहने के बाद अब मै अन्य धर्म को कैसे स्वीकार कर सकता हूं? फलतः उसे अपने प्राणों से हाथ धोना पडा
सिखों की सिंह सेना
भारतीय क्षात्र परम्परा में सिखों का बहुत योगदान रहा है। सिख धर्म, सनातन धर्म की ही एक शाखा है। व्यापक रूप से प्रचलित है कि सिख धर्म हिंदू धर्म तथा इस्लाम का एक मिश्रण है किंतु गुरु ग्रंथ साहिब पूर्णतः उपनिषदों के दार्शनिक तत्त्व की ही अभिव्यक्ति है।
सिख संप्रदाय की स्थापना गुरु नानक देव ने (1469 – 1538) की थी। सिख शब्द शिष्य का समानार्थी है। गुरु ग्रंथ साहिब में संस्कृत और प्राकृत ग्रंथों से चुन चुनकर सार तत्त्व युक्त मोती लिये गये है, दस गुरुओं की वाणियों के गीतो में पिरोया गया है, नीति संबंधी विभिन्न ग्रंथों से भी चुन चुन कर विवेक युक्त उपदेश लिए गये है। सिख धर्म मूलतः ‘सहज अद्वैत’ को प्रतिपादित करता है जिसका वास्तविक दृष्टिकोण अद्वैत आधारित ही है। सिख संप्रदाय की दो शाखाएं है – खालसा (केशधारी) और निर्मल (सहजधारी) सिख संप्रदाय ने क्षात्र चेतना पर विशेष जोर दिया है। अत्याचारी और निर्दयी मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन काल में सनातन धर्म की रक्षा में सिखों का शौर्य पूर्ण योगदान अकथनीय है।
गुरु नानक के उपरांत इस संप्रदाय में क्रमशः गुरु अंगद, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जन देव, गुरु हरगोविन्द, गुरु हर राय, गुरु हरकिशन, गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविन्द सिंह आये – सिख पंथ के यह दस गुरु है। अमृतसर का स्वर्ण मंदिर गुरु अर्जन देव द्वारा बनवाया गया था तथा हर मंदर साहिब भी। उन्होंने ही ग्रंथ साहिब का संकलन प्रारम्भ किया था। जहांगीर की क्रूरता ने उनके प्राण ले लिए थे कुछ अवसरों पर नशे के आदि जहांगीर को सूफियों और सन्यासियों के साथ अफीम का नशा करने के कारण जहांगीर को एक उदार शासक बतलाने का प्रयास किया जाता रहा है किंतु उसने हिंदुओं और जैन लोगों को अत्यधिक सताया था। एच.एम. इलियट तथा जॉन डावसन जैसे इतिहासकारों ने लिखा है कि उसने निर्दयता पूर्वक अहमदाबाद के अनेक जैन मंदिरों को नष्ट किया था। अनेक जैन मुनियों की हत्या की थी, तीर्थंकरो को वेदियों को तोडा था और उनसे मस्जिदों की सीढ़ियां बनवाई थी। मूलतः वह भी कट्टरपंथी मुस्लिम ही था। इस्लाम धर्म स्वीकार न करने तथा जहांगीर के शत्रु खुसरो को शरण देने के कारण जहांगीर ने उन्हें तड़पा तड़पा कर मारा। उन्हें उबलते पानी के कड़ाही में फेंका गया और फिर उन पर गरम गरम रेत फेंक कर उनकी नृशंस हत्या की गई।
सिखों के नौवें गुरु बहादुर थे जो क्षात्र चेतना के प्रखर महानायक थे। सन् 1621 में उनका जन्म गुरु हर गोविन्द और नानकी के पुत्र के रूप में हुआ था। माता पिता चाहते थे कि वे ‘त्यागी’ बने अतः उन्होंने उनका नाम त्यागमल रखा था। बचपन से ही अपने सामान्य विद्या अध्ययन के साथ साथ उन्हें सैन्य कलाओं तथा शास्त्र चालन का अच्छा प्रशिक्षण दिया गया था। चूंकि वे तलवार चालन में अत्यंत प्रवीण थे अतः उन्हें ‘तेग बहादुर’ की उपाधि से विभूषित किया गया था। पंजाब में तेग शब्द तलवार के लिए प्रयुक्त होता है।
गुरु पद प्राप्ति के बाद उन्होंने शिवालिक क्षेत्र में आनंदपुर नामक कस्बा बसाया और उसे ही अपना घर बना लिया। गुरु गोविन्द सिंह उन्ही के पुत्र थे। जब गोविन्द सिंह बालक ही थे तब गुरु तेग बहादुर को विकट परिस्थिति का सामना करना पड़ा था।
To be continued...
The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.
Footnotes
[1]अकबर : द ग्रेट मुगल, ऑक्सफोर्ड, द क्लारेंडन प्रेस, 1917, पृष्ठ 39