गुरु तेग बहादुर का शौर्य
औरंगजेब ने कश्मीर पर आक्रमण कर वहां के सभी पंडितों की हत्या करने का प्रयास किया, मृत्यु के भय से उन्होंने कश्मीर नरेश को अपना राज्य समर्पित कर देने को कहा। इस प्रकार बिना विरोध कश्मीर इस्लाम के अधीन आ गया। चूंकि कश्मीरी पंडितों ने त्याग और बलिदान से मुंह मोड़ लिया इस कारण से पूरा प्रदेश इस्लाम की हत्यारी रीति का शिकार बन गया। औरंगजेब ने अपने सूबेदार शेर अफगन को इस संदेश के साथ कश्मीर भेजा कि या तो पंडित लोग इस्लाम स्वीकार करले या मरने को तैयार रहें। ऐसे समय में पंडितों का एक समुदाय आनंदपुर पहुंचा और गुरु तेग बहादुर से मिला। उन्होंने गुरु को औरंगजेब के आदेश से अवगत कराया और रक्षा हेतु प्रार्थना की। गुरु तेग बहादुर समस्या के निदान हेतु विचारमग्न हो गये। पिता को चिंताग्रस्त देख पुत्र गोविन्द सिंह ने कारण पूछा। तब गुरु तेग बहादुर ने उत्तर दिया “किसी महान पुरुष को औरंगजेब के समक्ष जाकर उसे कहना होगा कि वह जो भी कर रहा है वह अनुचित है तब ही शेष लोगों को धर्मान्तरण की लटकती तलवार से बचाया जा सकता है और इसमें उस महा पुरुष के प्राण भी जा सकते हैं ” । प्रत्युत्तर में गोविन्द सिंह ने कहा “आप के सिवा वह महापुरुष और कौन हो सकता है? आप ही के सिवा और कौन जा सकता है? एक छोटे से निर्दोष बालक के शब्दो को मानते हुए गुरु तेग बहादुर अपने कुछ अनुयायियों के साथ दिल्ली रवाना हो गये। उन्होने औरंगजेब के साथ चर्चा की किंतु वह दुष्ट किसी भी बात को मानने हेतु सहमत नही हुआ। इतना ही नही उसने व्यंगात्मक ढंग से गुरु तेग बहादुर को चुनौती दी कि ‘मेरे समक्ष तुम कुछ चमत्कार करके दिखाओ !’ इस पर गुरु तेग बहादुर ने कहा कि ‘तुम जैसे लोगों को समझाने के लिए मुझे चमत्कार करने की आवश्यकता नही है ’ । ”
कश्मीरी पंडितो ने औरंगजेब को एक स्मरण पत्र भेजा कि यदि गुरु तेग बहादुर धर्म परिवर्तन कर लेंगे तो वे भी उनका अनुसरण करेंगे। यह सलाह भी स्वयं गुरु ने दिल्ली से उन्हे भेजी थी। औरंगजेब ने उनका धर्मांतरण कराने हेतु सभी प्रकार के छल-बल और धौंस झपट का प्रयोग कर लिया किंतु गुरु ने दृढ़ता पूर्वक मना करते हुए कहा – ‘मै तो क्या मेरा एक बाल भी इस्लाम को स्वीकार नहीं करेगा ’।
औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर एवं उनके शिष्यों को जेल में डाल दिया। जब गुरु को समझ में आ गया कि अब जीवित रह पाना असम्भव सा है तो उन्होंने अपने पुत्र गोविंद सिंह को एक पत्र लिखा जिसका सारांश यह था कि ‘सभी मानवीय उपाय असफल हो चुके है’, समझौते के सभी गंभीर और दृढ़ निश्चय के साथ किये गये प्रयास आज काम के नहीं रहे, अब भगवान का ही सहारा है अब वही हमें बचा सकता है ।
जवाब में नौ वर्षीय गोविंद सिंह ने लिखा – ‘हम पर ईश्वरीय कृपा है, हम में शक्ति भी है, गुलामी की जंजीरे अवश्य टूटेगी, सत्य और स्वतंत्रता की कीमत तो चुकानी पड़ती है, हमे तो यही मानना है कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और यह विश्व उसकी क्रीड़ा स्थली है, हमें उसके आशीर्वाद की प्रतीक्षा करना है ’
यह दोनों पत्र गुरु ग्रंथ साहिब में मिलते है। गुरु तेग बहादुर समझ गये कि उनका पुत्र विवेक संपन्न हो चुका हा तथा उचित उत्तराधिकारी है। सिख परंपरा में गुरु पद के उत्तराधिकारी को पाने के पत्ते भेजे जाने की प्रथा रही है। पुरोहित गुरदित्त किसी भी प्रकार कारागार से मुक्त होकर इन पान के पत्तों को गोविंद सिंह तक ले गया। इस घटना से क्रुद्ध होकर औरंगजेब ने बचे हुए सभी शिष्यों के टुकडे करवा दिये। वह सोचता था कि गुरु के समक्ष उनके शिष्यों को यातना देकर मारने से शायद गुरु धर्मांतरण स्वीकार कर ले ! औरंगजेब ने उनके सभी शिष्यों को विभिन्न यातनाएं देते हुए तडपा तडपा कर उनकी हत्या की। किंतु उनमें से किसी ने भी न तो इस्लाम स्वीकार किया न कोई मानसिक दुर्बलता का आभास तक प्रकट किया।
अन्ततः औरंगजेब ने आदेश दिया कि गुरु तेग बहादुर का सिर दिल्ली के चांदनी चौक में काट दिया जावे! गुरु तेग बहादुर चांदनी चौक में कपडे की चादर फैलाकर मृत्यु की प्रतीक्षा में बैट गये। इस अन्त समय में शायद गुरु इस्लाम स्वीकार कर ले इस प्रत्याशा में वहां एक मौलवी भी उपस्थित था। तलवार हाथों में लेकर जल्लाद तैयार खड़ा था। आसपास देखने वाले सब रो रहे थे वही एक निम्न जाति का सफाई कर्मी भाई चैतन्य भी था और उसने रोते रोते गुरु से प्रार्थना की कि ‘आप अपनी जान बचाने के लिए कोई चमत्कार क्यों नही करते है ?’ गुरु तेग बहादुर ने उत्तर दिया ‘अपने प्राणों को बचाने के लिए मै कोई चमत्कार नहीं करूंगा, मेरा जीवन ही चमत्कार है’ । जल्लाद ने आदेश का पालन किया और गुरु का सिर कट कर गिर गया। उनके गले में पड़ी जपमाला में एक छोटी सी कागज की पन्नी लगी हुई थी जिस पर लिखा था ‘सिर दिया पर सिर हरदिया’ अर्थात ‘मैने अपना सिर दिया है किंतु अपना धर्म नहीं गवाया है’ । इस प्रकार गुरु तेग बहादुर ने अपने प्राणों का त्याग करते हुए भी कश्मीरी पंडितों के सनातन धर्म के प्रति उनके विश्वास को अप्रभावित बनाये रखने का महानतम कार्य संपादित किया था।
भाई चैतन्य उनके सिर को लेकर गोविंद सिंह के पास भाग कर गया। लखी सिंह ने उनके शरीर को अपनी झोपड़ी में रखकर पूरी झोपडी में आग लगा दी। इस प्रकार गुरु का अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। दिल्ली के रकाबगंज में एक पवित्र स्थान है जहां गुरु तेग बहादुर का अंतिम संस्कार संपन्न हुआ था। जहां उनकी हत्या की गई थी वहां आज शीशगंज गुरुद्वारा खड़ा है। इस प्रकार गुरु तेग बहादुर ने अपने अद्वितीय त्यागपूर्ण शौर्य से सिखों में सैन्य चेतना को जागृत कर दिया।
इसके उपरांत गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु बने। उनके चार संतान थी। एक बार जब औरंगजेब आनंदपुर आया तो उसने शहर पर आक्रमण कर दिया। उस समय गुरु गोविंद सिंह के दो बडे पुत्र शहीद हो गये। गुरु गोविंद सिंह की माता गुजरी देवी उनके दो छोटे पुत्रों जोरावरसिंह तथा फतेह सिंह के साथ बच निकलने में सफल हो गई और इस प्रकार उनकी सुरक्षा हो गई थी किंतु गुरु गोविंद सिंह के घर में पिछले 20 वर्षों से खाना बनाने वाली संगू ने बडे इनाम के लालच में उनका भेद बता कर उन्हें पकडवा दिया। गुजरी देवी और दोनो बच्चों को जेल में डाल दिया गया। उन्हे नवाब वजीर खान के समक्ष पेश किया गया।
To be continued...
The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.