शिवाजी की विजय
शिवाजी की पहली बडी विजय अफजल खान के विरुद्ध हुई थी। बीजापुर के सुल्तान ने अफजल खान को शिवाजी का वध करने भेजा था, वह प्रतापगढ़ के किले के समीप अपने शिविर में ठहरा था। शुक्र नीति का पालन करते हुए शिवाजी ने उससे भेंट की और जब अफजल खान ने उन्हे मारने का प्रयास किया तो शिवाजी ने अपनी सुरक्षा करते हुए ‘बाघनख’ से उसका पेट फाड़ दिया और उसे मार डाला। शिवाजी के महत्त्वपूर्ण लक्षणों में उनकी शक्ति, बुद्धिमत्ता और शुक्र नीति द्वारा शत्रु पर विजय प्राप्त करना सराहनीय रहे हैं। अनेक तथाकथित इतिहासकार इस तथ्य को छुपाने का प्रयास करते है कि शिवाजी ने अफजल खान का पेट फाड कर उसे मार डाला था। अफजल खान के मारे जाने से बीजापुर सुल्तान अत्यंत भयभीत हो गया था और वह कभी बाहर नहीं आया। सन 1646 में सुल्तान को लकवा मार गया और वह सदा के लिए कमजोर हो गया।
इसके तत्काल बाद शिवाजी ने महाराष्ट्र के समुद्र तट के क्षेत्र पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया। उन्होंने समुद्र तट पर बडे बडे दुर्ग बनवाये जैसे कि सुवर्णदुर्ग, विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग और कोलाबा का किला। उन्होंने 270 से अधिक किलों पर अपना नियंत्रण प्राप्त कर एक सशक्त नौसेना का निर्माण किया। राजराज चोल तथा राजेन्द्र चोल के शासन के उपरांत अब शिवाजी ने पुनः एक बहुत बडी और भव्य नौसेना शक्ति का निर्माण किया था। शिवाजी ने युरोपियन लोगों से प्रेरणा लेकर इस नौसेना का निर्माण किया था। ज्ञान, तकनीक, अच्छे सुझाव, आर्थिक शक्ति आदि के क्षेत्र में शिवाजी ने अपने विवेक द्वारा सभी अच्छे प्रस्तावों को स्वीकार किया चाहे वे किसी भी स्रोत से प्राप्त हुए हो और उसमें अपने अहंकार को आड़े आने नहीं दिया। उन्होंने डाभोल, श्रंगेरपुर, प्रभावली, राजपुर और अन्य दूर दूर तक के क्षेत्रों की यात्राऍ की और समुद्र तट के क्षेत्र पर अपने नियंत्रण को सुदृढ़ किया।
एक बार शिवाजी के साथियों ने उत्तरी कोंकण क्षेत्र में जो जो आदिलशाह के आधिपत्य में था, एक धनाढ्य यात्री को जो कल्याण से बीजापुर जा रहा था, लूट लिया। धन लूटने के साथ उन्होंने एक सुन्दर मुस्लिम लड़की को भी बंदी बना लिया और उसे शिवाजी को भेंट स्वरूप प्रदान किया। इससे शिवाजी ने अत्यंत क्रोधित होकर अपने साथियों को धिक्कारा और उस लड़की के ससम्मान अपने विश्वस्त सैनिकों के संरक्षण में उसके घर पहुंचाया। यह घटना शिवाजी के दृढ़ चरित्र और उनकी महानता का साक्षात प्रमाण है। इस्लाम में तो ऐसी घटना की कल्पना तक कर पाना संभव नहीं है। इतिहासकारों के अनुसार इस घटना ने मुस्लिम समुदाय में हलचल पैदा कर दी थी।
औरंगजेब ने अपने चाचा शाइस्ता खान के शिवाजी का नाश करने के लिए भेजा। वह बड़े सैन्य बल के साथ आकर औरंगाबाद में ठहरा। अर्धरात्रि में शिवाजी ने उसके शिविर पर अचानक हमला कर दिया जिससे भगदड़ मच गई और शाइस्ता खान सहित उसके सैनिक इधर उधर भागने लगे। हारे हुए तथा भागते हुए शाइस्ता खान को अपनी उंगलियां गंवानी पड़ गई। इस घटना ने पहली बार औरंगजेब के मन में शिवाजी का डर पैदा कर दिया था।
मुगल लोगों को पाश्चात्य देशों से सूरत के समुद्र बंदरगाह द्वारा बड़े स्तर पर व्यापार होता था जिसे शिवाजी ने आक्रमण कर अपने नियंत्रण में ले लिया। औरंगजेब ने एक बड़े सैन्य बल के साथ राजा जयसिंह को शिवाजी का पीछा करने भेजा जिसने शिवाजी का आगरा के किले तक पीछा किया। औरंगजेब ने अपने दरबार में शिवाजी का बहुत अपमान किया और जाते समय उन्हे व उनके पुत्र संभाजी को बंदी बना लिया। वहां शिवाजी ने बीमार होने का नाटक कर लोगों में मिठाई बांटने के बहाने एक दिन मिठाई के बक्से में छिपकर कारागार से बाहर आ गये। साधु के वेष में शिवाजी मात्र पच्चीस दिनों में घुमावदार रास्तों से रायगढ़ पहुंच गये। शिवाजी की सहनशक्ति, क्षमता और साधन संपन्नता सचमुच प्रशंसनीय रही है।
सन् 1669 में औरंगजेब ने सभी हिंदू मंदिरों, संस्थाओं, शालाओं को नष्ट करने का भयंकर आदेश दे दिया, इसी के परिणाम स्वरूप मुसलमानों ने काशी और मथुरा के सभी मंदिरों और हिंदू संस्थाओं को नष्ट कर दिया। शिवाजी की माता जीजाबाई ने इसका समुचित प्रत्युत्तर देने का निर्देश दिया। तब शिवाजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। एक बार पासे के खेल के समय जीजाबाई ने शिवाजी को सिंहगढ़ का किला जीतने का सुझाव दिया। सिंहगढ़ का किला अत्यंत दुर्गम पहाड़ी पर स्थित अजेय दुर्ग था। शिवाजी ने इस दुर्ग को जीतने के लिए अपने वीर योद्धा तानाजी मालुसरे के साथ कुछ दो सौ सैनिकों को साथ लेकर सिंहगढ़ पर आक्रमण किया। अपने सैनिकों के अभूतपूर्व शौर्य के कारण शिवाजी उस किले को जीतने में सफल हो गये। यशवंती नामक गोह के सहारे सैनिक दुर्ग की दीवार पर चढ कर दुर्ग जीतने में सफल हो गये किन्तु इसमें तानाजी वीरगति प्राप्त किया। अत्यंत दुःख के साथ शिवाजी ने कहा ‘गढ़ आला पण सिंह गेला’ !! यह औरंगजेब को शिवाजी का चुनौतीपूर्ण उत्तर था।
इस युद्ध की तुलना पर्शिया और स्पार्टा के मध्य थर्मोपाइल के युद्ध से की जा सकती है।
इसके उपरांत शिवाजी ने उत्तरी कोंकण के कई क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया। सन् 1669 से लगातार तीन वर्षों तक वे अपनी बडी विजय यात्रा पथ पर लड़ते रहे। उन्होने पुनः सूरत पर आक्रमण कर दिया। औरंगजेब ने स्वयं अपने रोजनामचे में लिखा कि
शिवाजी ने उसे उन्नीस वर्षों तक परेशान किया। मैंने सारे प्रयास कर लिए किंतु ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि वह अपने राज्य को छोडेगा। मै उस पर अपना प्रभुत्व नहीं जमा सका और न मै वहाँ से अपनी संपदा बढ़ा सका ।
चालीस वर्ष की उम्र में शिवाजी को छत्रपति की उपाधि दी गई। उस समय यह बड़ा प्रश्न उठाया गया कि क्या शिवाजी वास्तव में क्षत्रिय है ? क्या उनका सिसोदिया समुदाय से संबंध है ? यद्यपि वे विवाहित थे किंतु उनका उपनयन संस्कार नहीं हुआ था। ऐसी स्थिति में काशी के पंडित विश्वेश्वर भट्ट (या गागा भट्ट) ने सब विद्वानों के समक्ष स्पष्ट किया कि अपने गुणों एवं चारित्रिक लक्षणों से शिवाजी एक सच्चे क्षत्रिय है। वस्तु स्थिति को स्पष्टता प्रदान करने की दृष्टि से उन्होंने इस संबंध में एक ग्रंथ भी लिखा – ‘साम्राज्यपट्टाभिषेकनिबंधनविधि’ ।
इस प्रकार की छूट के उदाहरण ऐतरेय ब्राह्मण में देखे जा सकते है। पूर्व काल में जो विधियाँ सम्राट भरत, चन्द्रगुप्त मौर्य, समुद्रगुप्त, पुलकेशी, राजेन्द्र चोल, विक्रमादित्य तथा कृष्णदेवराय के समय अपनाई गई थी उन्हे ही शिवाजी के प्रकरण में पुनः स्थापित किया गया। 16 जून 1674 को शिवाजी को ‘छत्रपति’ के राजमुकुट से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें ‘क्षत्रियकुलावतंस’, ‘सिंहासनाधीश्वर’ और ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि भी दी गई थी। उन्हें चक्रवर्ती कहा गया था। शिवाजी शक नाम से नये युग का प्रारम्भ भी किया गया। उन्होने आठ मंत्रियों की एक अष्ठ प्रधान समिति का निर्माण किया। उन्होंने आय का एक चौथाई कर ‘चौथ’ के नाम से लागू किया।
To be continued...
The present series is a Hindi translation of Śatāvadhānī Dr. R. Ganesh's 2023 book Kṣāttra: The Tradition of Valour in India (originally published in Kannada as Bharatiya Kshatra Parampare in 2016). Edited by Raghavendra G S.