
चोल लोगों पर यह बड़ा आरोप लगाया जाता है कि वे वैष्णव विरोधी थे। इसको प्रमाणित करने के कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। राजराज तथा राजेन्द्र चोल दोनों ने ही अनेक विष्णु मंदिरों का निर्माण करवाया था। नागपट्टनं में उन्होंने बौद्ध विहार का निर्माण करवाया था। पुडुकोट्टई जिले के सित्तनवसल में जो सिद्धों का केंद्र स्थान है, जैनों की सुरक्षा तथा सहयोगार्थ उन्होंने खुल कर मदद की। उसी स्थान से सिद्ध-प्रणाली की औषधि का प्रारम्भ हुआ। तमिल साहित्य में जैन लोगों का य...

पाप्ड्या, चोल एवं चेर
चोल लोगों का शासन तमिलनाडु के पूर्वी तट पर था, पाण्ड्याओं का दक्षिण भारत के मध्य क्षेत्र में तथा चेर लोगों ने पश्चिमी तट पर शासन किया । इन तीनों को ‘मुवेन्दिदर’ (तीन शासक) के नाम से जाना जाता रहा है। जहां चेर साम्राज्य था वह क्षेत्र आज का केरल प्रांत है। केरल द्वारा क्षात्र परंपरा को कोई सीधा योगदान नहीं दिया गया तथापि ज्ञानार्जन, अध्ययन और अध्यापन को पोषित करने और उसके अनुकूल परिवेश प्रदान कर उसने क्षात्र के एक अन्य पक्ष क...

कंपण द्वितीय का उत्तराधिकारी देवराय प्रथम था और उसका पुत्र विख्यात देवराय द्वितीय अथवा प्रौढ़देवराय था जो प्रौढप्रतापी’ की उपाधि से सम्मानित था। उसने बचे हुए दुश्मनों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया। उसने विजयनगर साम्राज्य की सीमाओं को और सुदृढ़ करते हुए नौसेना की शक्ति को भी बढ़ाया । उसने गोवा तक फैले समुद्री तट को पुनर्जीवित कर नये बंदरगाह तथा मालगोदामों का निर्माण करवाया। उसकी सेना का नेतृत्व आक्रामक लकण्ण दण्डेश कर रहा था। उसने पूरे साम्राज्य म...

होयसल विष्णुवर्धन
क्षात्र परम्परा के अन्य शिखर होयसल सम्राट बिट्टीदेव अर्थात विष्णुवर्धन हुए हैं। उसने अपने साम्राज्य को तिरुचिरापल्ली से कृष्णा नदी तक विस्तारित किया था। उसने अनेक युद्ध जीते थे। उसने अनेक शिव, विष्णु तथा जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था। बेलूर-हळेबीडु का आश्चर्य जनक अत्यंत मोहक स्थापत्य तथा शिल्पकला से युक्त मंदिर का निर्माण उसी के प्रोत्साहन का प्रतिफल है। कुछ लोगों के मत में वह ‘श्रीवैष्णव’ बना गया था किंतु यह तथ्यात्मक रूप स...

राष्ट्रकूट साम्राज्य का हरा भरा विस्तार
कन्नड लोगों के हृदय में बसने वाला एक प्रसिद्ध नाम नृपतुंग का है। श्री विजय के साथ अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कविराजमार्ग’ की रचना करने के कारण अमोघवर्ष नृपतुंग की प्रसिद्धि अमर हो गई। यद्यपि वह क्षात्र प्रतिष्ठा संपन्न महान योद्धा था किंतु शांतिकाल में भी साम्राज्य को संतुलित प्रबंधन के साथ सम्हालने में वह सक्षम था।
उसकी राजवंशीय परम्परा अपनी क्षात्र चेतना के कारण सुविख्यात थी। राष्ट्रकूटों ने अनेक बार कन्नौज शा...

चालुक्य विक्रमादित्य का उत्कृष्ट शासन
कर्नाटक के प्रमुखतम सम्राटों में कल्याण चालुक्य राज सम्राट विक्रमादित्य षष्टम का नाम स्मरणीय है। वह सोमेश्वर प्रथम का पुत्र था। यह उसका सौभाग्य था कि विद्यापति बिल्हण जैसा कवि उसके दरबार में था जिसने उसकी उपलब्धियों को सदा के लिए अमर बना दिया।
अठारह सर्गों की लम्बी काव्य रचना ‘विक्रमांकदेवचरित’ में कवि बिल्हण ने विक्रमादित्य षष्टम के जीवन और उसकी उपलब्धियों का वर्णन किया है। विक्रमादित्य षष्टम ने पचास वर्ष...

हमारी दुर्बलताएँ
मुख्य रूप से हमारी दुर्बलता के दो पक्ष रहे है :- प्रथम तो यह कि हमने अपने शत्रुओं को हमारे द्वार तक आने दिया तथा दूसरा यह कि हमने युद्ध के संबंध में विकसित रणनीतियों तथा शस्त्र विज्ञान की नवीनतम जानकारियों से स्वयं को अवगत नहीं रखा। इसी के साथ हमारे आपसी कलह ने इन दो कमजोरियों को हमारी पराजय का मुख्य कारण बनाया।
कुछ इतिहासकारों का यह मत है कि “जब विदेशी आक्रमण कर्ता हिमालय की घाटियों को पार कर हमारे देश में प्रवेश करते रहे थे त...

ह्वेनसांग के अनुसार शशांक ने गया में स्थित बोधि वृक्ष को कटवा दिया था तथा पास के मंदिर से बुद्ध की प्रतिमा को हटाने का आदेश दिया था। किंतु इस संबंध में आर.सी. मजूमदार असहमत है और लिखते है :- “यह तथा इसी प्रकार की अन्य कहानियां जो शशांक को बौद्ध धर्म पर अत्याचार करने वाले के रूप में दर्शाने के लिए लिखी गई है, उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है जब तक कि इस संबंध में कोई स्वतंत्र साक्ष्य उपलब्ध न हो। क्योंकि शशांक की राजधानी में ही बौद्ध धर्म फलता...

शौर्य काल
पिछले कुछ समय में लिखे गये भारतीय इतिहास में अनेक घटनाओं तथा प्रकरणों को अवांछित रूप से सम्मान प्रदान करते हुए महत्वपूर्ण बतलाया गया है। ऐसे अनेक विवरण दिये गये है। जिनका हमारे इतिहास में अस्तित्व ही नही था और इस प्रकार कपट पूर्वक लोगों को भ्रमित तथा गुमराह किया गया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे झूठे कथन सत्य को जानने में सबसे बडी बाधा उपस्थित करते हैं। आज की हमारी अनेक इतिहास की पाठ्यपुस्तके इसी प्रकार के कपटयुक्त लेखन के वर्ग में...

अन्य राजपूत राजवंश
गुर्जर चौलुक या चालुक्य वंश को सामान्य रुप से सोलंकी वंश के नाम स जाना जाता है। भीमदेव प्रथम (सन् 1022-64) अत्यधिक प्रसिद्ध था किंतु जब महमूद गजनी ने सोमनाथ पर आक्रमण किया तो वह एक डरपोक व्यक्ति की भांति अपनी जान बचाने के लिए कच्छ के सुरक्षित क्षेत्र में भाग गया। इस प्रकार उसने क्षात्र चेतना पर एक अमिट कलंक लगा दिया। इतना ही नही मूर्खता वश यह सदैव परमार भोज और कलचुरी कर्ण का भी विरोध करता रहा जो सनातन धर्म के प्रमुख संरक्षक थ...
